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इन्द्र॒ ओष॑धीरसनो॒दहा॑नि॒ वन॒स्पतीँ॑रसनोद॒न्तरि॑क्षम्। बि॒भेद॑ ब॒लं नु॑नु॒दे विवा॒चोऽथा॑भवद्दमि॒ताभिक्र॑तूनाम्॥

English Transliteration

indra oṣadhīr asanod ahāni vanaspatīm̐r asanod antarikṣam | bibheda valaṁ nunude vivāco thābhavad damitābhikratūnām ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। ओष॑धीः। अ॒स॒नो॒त्। अहा॑नि। व॒न॒स्पती॑न्। अ॒स॒नो॒त्। अ॒न्तरि॑क्षम्। बि॒भेद॑। ब॒लम्। नु॒नु॒दे। विऽवा॑चः। अथ॑। अ॒भ॒व॒त्। द॒मि॒ता। अ॒भिऽक्र॑तूनाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:34» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजादि जनों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - वह (इन्द्रः) ऐश्वर्य्य देनेवाला राजा (अहानि) दिनों दिन (ओषधीः) सोम आदि ओषधियों को (असनोत्) देवै (वनस्पतीन्) पीपल आदि वनस्पतियों को (असनोत्) देवै (अन्तरिक्षम्) जल और (बलम्) बल का (बिभेद) भेदन करै (विवाचः) अनेक प्रकार की वाणियों की (नुनुदे) प्रेरणा करै (अथ) और भी (अभिक्रतूनाम्) सहसा शीघ्र कर्म करनेवाले शत्रुओं को (दमिता) दमन करनेवाला (अभवत्) होवै ॥१०॥
Connotation: - राजा आदि श्रेष्ठ जनों को चाहिये कि प्रतिदिन ओषधियों के रसादि उत्पन्न कर उनके रस का पान विद्यासम्बन्धी वाणी का प्रचार और सब जनों की बुद्धियों का अपनी बुद्धि से भी अधिकता के सहित दमन अर्थात् विषयों से निवृत्ति करैं, जिससे आरोग्य और विद्याओं के प्रभाव प्रतिदिन बढ़ैं ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजादिजनैः किं कर्त्तव्यमित्याह।

Anvay:

स राजेन्द्रोऽहानि नित्यमोषधीरसनोद्वनस्पतीनसनोदन्तरिक्षं बलं च बिभेद विवाचो नुनुदेऽथाभिक्रतूनां दमिताऽभवत् ॥१०॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) ऐश्वर्य्यप्रदः (ओषधीः) सोमाद्याः (असनोत्) सुनुयात् (अहानि) दिनानि (वनस्पतीन्) अश्वत्थादीन् (असनोत्) सुनुयात् (अन्तरिक्षम्) उदकम्। अन्तरिक्षमित्युदकना०। निघं० १। १२। (बिभेद) भिन्द्यात् (बलम्) (नुनुदे) प्रेरयेत् (विवाचः) विविधा वाणीः (अथ) (अभवत्) भवेत् (दमिता) नियन्ता (अभिक्रतूनाम्) आभिमुख्येन क्रतुः कर्म येषां तेषां बलीयसां शत्रूणाम् ॥१०॥
Connotation: - राजादिजनैः प्रत्यहमोषधिरसं निर्माय तद्रसपानं विद्यावाक्प्रचारणं सर्वेषां प्रज्ञानां स्वप्रज्ञाधिक्येन दमनं च कर्त्तव्यं यत आरोग्यं विद्याप्रभावाश्च प्रतिदिनं वर्धेरन् ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजा व श्रेष्ठ लोकांनी दररोज औषधींचे रस इत्यादी उत्पन्न करून त्यांच्या रसाचे पान, विद्यासंबंधी वाणीचा प्रचार व आपल्या बुद्धीपेक्षाही अधिक शत्रूंच्या बुद्धीचे दमन करावे, ज्यामुळे आरोग्य व विद्यांचा प्रभाव दररोज वाढावा. ॥ १० ॥