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ए॒ना व॒यं पय॑सा॒ पिन्व॑माना॒ अनु॒ योनिं॑ दे॒वकृ॑तं॒ चर॑न्तीः। न वर्त॑वे प्रस॒वः सर्ग॑तक्तः किं॒युर्विप्रो॑ न॒द्यो॑ जोहवीति॥

English Transliteration

enā vayam payasā pinvamānā anu yoniṁ devakṛtaṁ carantīḥ | na vartave prasavaḥ sargataktaḥ kiṁyur vipro nadyo johavīti ||

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Pad Path

ए॒ना। व॒यम्। पय॑सा। पिन्व॑मानाः। अनु॑। योनि॑म्। दे॒वऽकृ॑तम्। चर॑न्तीः। न। वर्त॑वे। प्र॒ऽस॒वः। सर्ग॑ऽतक्तः। कि॒म्ऽयुः। विप्रः॑। न॒द्यः॑। जो॒ह॒वी॒ति॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:33» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (एना) इस (पयसा) जल से (पिन्वमानाः) सींचती हुईं (देवकृतम्) विद्वानों ने किये शास्त्र और (योनिम्) जल को (अनु, चरन्तीः) अनुकूल प्राप्त होनेवाली (नद्यः) नदियाँ (वर्त्तवे) स्वीकार करने को (न) नहीं निवृत्त होती हैं उनको (वयम्) हम लोग प्राप्त होवें जो (सर्गतक्तः) उत्पत्ति में प्रसन्न (प्रसवः) सन्तान (किंयुः) अपने को क्या इच्छा करनेवाला (विप्रः) बुद्धिमान् पुरुष (जोहवीति) बारम्बार शब्द करता है, वह हम लोगों को प्राप्त होवे ॥४॥
Connotation: - जैसे जलसहित नदियाँ सबकी उपकार करनेवाली होतीं और कभी जल से हीन नहीं होती हैं, वैसे जो ब्रह्मचर्य से युक्त स्त्री और पुरुष का सन्तान उत्पन्न हो और धर्मसम्बन्धी ब्रह्मचर्य्य से सम्पूर्ण विद्याओं को प्राप्त होकर विद्वान् होता है, वही सबका उपकार कर सकता है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

या एना पयसा पिन्वमाना देवकृतं योनिमनु सञ्चरन्तीर्नद्यो वर्त्तवे न भवन्ति न निवर्त्तन्ते ता वयं प्राप्नुयाम। यः सर्गतक्तः प्रसवः किंयुर्विप्रो जोहवीति सोऽस्मान्प्राप्नुयात् ॥४॥

Word-Meaning: - (एना) एनेन (वयम्) (पयसा) उदकेन (पिन्वमानाः) सिञ्चमानाः (अनु) (योनिम्) उदकम्। योनिरित्युदकना०। निघं० १। १२। (देवकृतम्) देवैर्विद्वद्भिः कृतं निष्पादितं शास्त्रम् (चरन्तीः) प्राप्नुवन्त्यः (न) (वर्त्तवे) वरितुं स्वीकर्त्तुम् (प्रसवः) सन्तानः (सर्गतक्तः) यः सर्ग उत्पत्तौ तक्तो हसितः। अत्र वाच्छन्दसीतीडभावः। (किंयुः) आत्मनः किमिच्छुः। अत्र वाच्छन्दसीति क्यच् प्रतिषेधो न। (विप्रः) मेधावी (नद्यः) सरितः (जोहवीति) भृशं शब्दयति ॥४॥
Connotation: - यथा सोदका नद्यः सर्वोपकारका भवन्ति कदाचिज्जलहीना न भवन्ति तथैव यः कृतब्रह्मचर्य्ययोः स्त्रीपुरुषयोः सन्तानो भूत्वा धर्म्येण ब्रह्मचर्य्येणाऽखिला विद्याः प्राप्य विद्वान् जायते स एव सर्वानुपर्त्तुं शक्नोति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जशा जलयुक्त नद्या सर्वांना उपकृत करतात, कधीही जलविहीन नसतात तसे ब्रह्मचर्ययुक्त स्त्री-पुरुषांचे संतान ब्रह्मचर्य पालन व विद्या प्राप्ती करून, विद्वान बनून सर्वांवर उपकार करू शकते. ॥ ४ ॥