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आ ते॑ कारो शृणवामा॒ वचां॑सि य॒याथ॑ दू॒रादन॑सा॒ रथे॑न। नि ते॑ नंसै पीप्या॒नेव॒ योषा॒ मर्या॑येव क॒न्या॑ शश्व॒चै ते॑॥

English Transliteration

ā te kāro śṛṇavāmā vacāṁsi yayātha dūrād anasā rathena | ni te naṁsai pīpyāneva yoṣā maryāyeva kanyā śaśvacai te ||

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Pad Path

आ। ते॒। का॒रो॒ इति॑। शृ॒ण॒वा॒म॒। वचां॑सि। य॒याथ॑। दू॒रात्। अन॑सा। रथे॑न। नि। ते॒। नं॒सै॒। पी॒प्या॒नाऽइ॑व। योषा॑। मर्या॑यऽइव। क॒न्या॑। श॒श्व॒चै। त॒ इति॑ ते॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:33» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:13» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (कारो) शिल्प विद्याओं में चतुर ! (ते) आपके (वचांसि) विद्या के प्राप्त करानेवाले वचनों को (अनसा) शकट और (रथेन) रथ से (दूरात्) दूर से आपके हम लोग (आ) सब प्रकार (शृणवाम) सुनैं ओर जैसे आप हम लोगों को (ययाथ) प्राप्त होवैं वैसे हम लोग आपको प्राप्त होवैं जो आप (पीप्यानेव) विद्या के वृद्ध दो पुरुषों के सदृश (नि, नंसै) नमस्कार करैं (ते) आपके लिये हम लोग भी नम्र होवैं (योषा) स्त्री (मर्यायेव) जैसे पुरुष के लिये और (कन्या) कन्या (शश्वचै) प्रीति से मिलने के लिये वैसे (ते) आपके लिये हम लोग अभिलाषा करैं ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग दूर से आय के विद्वानों के समीप से अनेक प्रकार की विद्याओं को प्राप्त करके नम्र होते हैं, वे विद्यावृद्ध होकर जैसे पतिव्रता स्त्री पति और कन्या अभीष्ट वर को वैसे विद्या को प्राप्त होके आनन्दित होते हैं ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे कारो ते तव वचांस्यानसा रथेन दूरादागत्य वयमाशृणवाम यथा त्वमस्मान् ययाथ तथा वयं त्वां प्राप्नुयाम। यस्त्वं पीप्यानेव नि नंसै ते तुभ्यं वयमपि नमाम योषा मर्यायेव कन्या शश्वचै इव ते तुभ्यं वयमभिलषेम ॥१०॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (ते) तव (कारो) शिल्पविद्यासु कुशल (शृणवाम) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वचांसि) विद्याप्रज्ञापकानि वचनानि (ययाथ) प्राप्नुयाः (दूरात्) (अनसा) (रथेन) (नि) (ते) तव (नंसैः) नमेः (पीप्यानेव) विद्यावृद्धाविव (योषा) (मर्यायेव) यथा पुरुषाय (कन्या) (शश्वचै) परिष्वङ्गाय (ते) तुभ्यम् ॥१०॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये दूरादागत्य विदुषां सकाशाद्विविधा विद्याः प्राप्य नम्रा भवन्ति ते विद्यावृद्धाः सन्तः पतिव्रता स्त्री पतिमिव कन्याऽभीष्टं वरमिव विद्यां प्राप्याऽऽनन्दन्ति ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे लोक दूरदूरच्या स्थानाहून आलेल्या विद्वानांकडून अनेक प्रकारच्या विद्या प्राप्त करून नम्र होतात ते विद्यावृद्ध होतात. जशी पतिव्रता स्त्री पतीला व कन्या अभीष्ट वराला प्राप्त करते तसे विद्या प्राप्त करून ते आनंदित होतात. ॥ १० ॥