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अद्रो॑घ स॒त्यं तव॒ तन्म॑हि॒त्वं स॒द्यो यज्जा॒तो अपि॑बो ह॒ सोम॑म्। न द्याव॑ इन्द्र त॒वस॑स्त॒ ओजो॒ नाहा॒ न मासाः॑ श॒रदो॑ वरन्त॥

English Transliteration

adrogha satyaṁ tava tan mahitvaṁ sadyo yaj jāto apibo ha somam | na dyāva indra tavasas ta ojo nāhā na māsāḥ śarado varanta ||

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Pad Path

अद्रो॑घ। स॒त्यम्। तव॑। तत्। म॒हि॒ऽत्वम्। स॒द्यः। यत्। जा॒तः। अपि॑बः। ह॒। सोम॑म्। न। द्यावः॑। इ॒न्द्र॒। त॒वसः॑। ते॒। ओजः॑। न। अहा॑। न। मासाः॑। श॒रदः॑। व॒र॒न्त॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:32» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (अद्रोघ) द्रोह से रहित (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के दाता जगदीश्वर ! (यत्) जो (सद्यः) तत्काल (जातः) प्रकट हुआ सूर्य (सोमम्) सब जगत् से रस को (अपिबः) पीता-खींचता है (तत्) वह जिन (तव) आपके (सत्यम्) सत्य (महित्वम्) महिमा को (न) नहीं उल्लङ्घन कर सकता है (ते) आपके (तवसः) बल के (ओजः) प्रभाव को न (द्यावः) प्रकाशस्वरूप लोक (न) न (अहा) दिन (न) न (मासाः) चैत्र आदि महीने और न (शरदः) वसन्त आदि ऋतुयें (वरन्त) धारण करती हैं (भवन्तं, ह) उन्हीं आपकी हम लोग निरन्तर सेवा करें ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे परमेश्वर किसी से द्रोह नहीं करता है, वैसे आप लोग भी हूजिये। जिस परमेश्वर की सृष्टि में सूर्य्य आदि बड़े-बड़े पदार्थ विद्यमान हैं और जिसके स्वरूप वा प्रभाव के अन्त को कोई भी नहीं प्राप्त होता है, वही हम लोगों का इष्टदेव है ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अद्रोघेन्द्र जगदीश्वर यद्यः सद्यो जातः सूर्यः सोममपिबस्तद्यस्य तव सत्यं महित्वं नोल्लङ्घयति ते तवस ओजो न द्यावो नाहा न मासाः शरदश्च वरन्त तं ह भवन्तं वयं निरन्तरं सेवेमहि ॥९॥

Word-Meaning: - (अद्रोघ) द्रोहरहित (सत्यम्) सत्यभाषणादिक्रियोज्ज्वलम् (तव) (तत्) सः (महित्वम्) महिमानम् (सद्यः) (यत्) यः (जातः) प्रकटः (अपिबः) पिबति (ह) किल (सोमम्) सर्वस्माज्जगतो रसम् (न) (द्यावः) प्रकाशमया लोकाः (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रद (तवसः) बलस्य (ते) तव (ओजः) पराक्रमम् (न) (अहा) अहानि दिनानि (न) निषेधे (मासाः) चैत्रादयः (शरदः) वसन्तादयः (वरन्त) वारयन्ति ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्या यथा परमेश्वरः कञ्चिन्न द्रुह्यति तथा यूयमपि भवत यस्य सृष्टौ सूर्य्यादयो महान्तः पदार्था विद्यन्ते यस्य स्वरूपस्य प्रभावस्य वान्तं कोऽपि न गच्छति स एवाऽस्माकमिष्टदेवोऽस्ति ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जसा परमेश्वर कुणाशी द्रोह करीत नाही तसे तुम्हीही व्हा. ज्या परमेश्वराच्या सृष्टीत सूर्य इत्यादी महान पदार्थ विद्यमान असतात, ज्याचे स्वरूप किंवा अंत कुणालाही लागत नाही तोच आमचा इष्ट देव आहे. ॥ ९ ॥