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ये ते॒ शुष्मं॒ ये तवि॑षी॒मव॑र्ध॒न्नर्च॑न्त इन्द्र म॒रुत॑स्त॒ ओजः॑। माध्य॑न्दिने॒ सव॑ने वज्रहस्त॒ पिबा॑ रु॒द्रेभिः॒ सग॑णः सुशिप्र॥

English Transliteration

ye te śuṣmaṁ ye taviṣīm avardhann arcanta indra marutas ta ojaḥ | mādhyaṁdine savane vajrahasta pibā rudrebhiḥ sagaṇaḥ suśipra ||

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Pad Path

ये। ते॒। शुष्म॑म्। ये। तवि॑षीम्। अव॑र्धन्। अर्च॑न्तः। इ॒न्द्र॒। म॒रुतः॑। ते॒। ओजः॑। माध्य॑न्दिने। सव॑ने। व॒ज्र॒ऽह॒स्त॒। पिब॑। रु॒द्रेभिः॑। सऽग॑णः। सु॒ऽशि॒प्र॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:32» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - (सुशिप्र) सुन्दर ठोढ़ी और नासिका जिनकी (वज्रहस्त) वा वज्र आदि शस्त्र हाथों में जिनके वह हे (इन्द्र) दुष्ट पुरुषों के समूह नाशक ! (ये) जो आपका (अर्चन्तः) सत्कार करनेवाले (मरुतः) वायु के सदृश वीर पुरुष (ते) आपके समीप से (शुष्मम्) बल को (अवर्धन्) बढ़ावैं (ये) वा जो लोग (ते) आपकी (तविषीम्) सेना और (ओजः) पराक्रम को बढ़ावैं उन (रुद्रेभिः) दुष्टों के रुलानेवाले वीर पुरुषों के साथ (सगणः) समूह के सहित वर्त्तमान आप (माध्यन्दिने) मध्य दिन में होनेवाले (सवने) प्रेरणा करने में सूर्य्य के सदृश सोमलतादि ओषधि का पान करो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जो आपके मन्त्री लोग सेना, विजय, धन, राज्य, उत्तम शिक्षा, विद्या और धर्म को बढ़ावैं, उनका आप निरन्तर सत्कार उनके साथ राज्य के सुख का सदा भोग करो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजधर्ममाह।

Anvay:

हे सुशिप्र वज्रहस्तेन्द्र ! ये त्वामर्चन्तो मरुतस्ते तव शुष्ममवर्धन् ये ते तविषीं चावर्धंस्तविषीमोजश्चावर्धँस्तैर्रुद्रेभिः सह सगणः सन्माध्यन्दिने सवने सूर्य्य इव सोमं पिब ॥३॥

Word-Meaning: - (ये) (ते) तव सकाशात् (शुष्मम्) बलम् (ये) (तविषीम्) बलवतीं सेनाम् (अवर्धन्) वर्धयेयुः (अर्चन्तः) सत्कुर्वन्तः (इन्द्र) दुष्टदलविदारक (मरुतः) वायव इव वीराः (ते) तव (ओजः) पराक्रमः (माध्यन्दिने) मध्यदिने भवे (सवने) प्रेरणे (वज्रहस्त) वज्रादीनि शस्त्राणि हस्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ (पिब)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (रुद्रेभिः) दुष्टान्रोदयद्भिर्वीरैः (सगणः) गणेन सह वर्त्तमानः (सुशिप्र) शोभने शिप्रे हनुनासिके यस्य ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ये ते सचिवाः सेनां विजयं धनं राज्यं सुशिक्षां विद्यां धर्मं च वर्धयेयुस्ताँस्त्वं सततं सत्कुर्य्यास्तैः सह राज्यसुखं सदा भुङ्क्ष्व ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा, जे तुझे मंत्री सेना, विजय, धन, राज्य, उत्तम शिक्षण, विद्या व धर्म वाढवितात त्यांचा तू निरंतर सत्कार करून त्यांच्याबरोबर राज्याच्या सुखाचा सदैव भोग कर. ॥ ३ ॥