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य॒ज्ञेनेन्द्र॒मव॒सा च॑क्रे अ॒र्वागैनं॑ सु॒म्नाय॒ नव्य॑से ववृत्याम्। यः स्तोमे॑भिर्वावृ॒धे पू॒र्व्येभि॒र्यो म॑ध्य॒मेभि॑रु॒त नूत॑नेभिः॥

English Transliteration

yajñenendram avasā cakre arvāg ainaṁ sumnāya navyase vavṛtyām | yaḥ stomebhir vāvṛdhe pūrvyebhir yo madhyamebhir uta nūtanebhiḥ ||

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Pad Path

य॒ज्ञेन॑। इन्द्र॑म्। अव॑सा। आ। च॒क्रे॒। अ॒र्वाक्। आ। ए॒न॒म्। सु॒म्नाय॑। नव्य॑से। व॒वृ॒त्या॒म्। यः। स्तोमे॑भिः। व॒वृ॒धे। पू॒र्व्येभिः॑। यः। म॒ध्य॒मेभिः॑। उ॒त। नूत॑नेभिः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:32» Mantra:13 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब कैसे मनुष्य सुख को प्राप्त हो सकते, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (यः) जो (पूर्व्येभिः) प्राचीनों में कुशल और (मध्यमेभिः) बीच में हुए (उत) और भी (नूतनेभिः) नवीन (स्तोमेभिः) प्रशंसायुक्त कर्मों से (वावृधे) बढ़ता है (यः) जो (नव्यसे) नवीन (सुम्नाय) सुख के लिये (यज्ञेन) युक्त व्यवहार (अवसा) रक्षा आदि से (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य्य को (आचक्रे) अच्छा करता है (अर्वाक्) पीछे (एनम्) इसकी रक्षा करता है उसके समीप (आ) (ववृत्याम्) प्राप्त होऊँ, वैसे आप लोग भी इस कर्म को करें ॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य व्यतीत हुए व्यवहार के शेष मर्म को जानने मध्यम पुरुषों की रक्षा करने और नवीन प्रयत्न से वृद्धि को प्राप्त होते हैं, वे लोग उसके अनन्तर नवीन-नवीन सुख को प्राप्त होने योग्य होते हैं न कि अन्य आलस्ययुक्त और मूर्ख पुरुष ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ कीदृशा जनाः सुखमाप्तुमर्हन्तीत्याह।

Anvay:

हे मनुष्या यथाऽहं यः पूर्व्येभिर्मध्यमेभिरुत नूतनेभिः स्तोमेभिर्वावृधे यो नव्यसे सुम्नाय यज्ञेनावसेन्द्रमाचक्रे। अर्वागेनं रक्षति तमाववृत्यां तथा भवन्तोऽप्येतत्कर्माऽनुतिष्ठन्तु ॥१३॥

Word-Meaning: - (यज्ञेन) युक्तेन व्यवहारेण (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यम् (अवसा) रक्षाणाद्येन (आ) (चक्रे) समन्तात् करोति (अर्वाक्) पश्चात् (आ) (एनम्) (सुम्नाय) सुखाय (नव्यसे) अतिशयेन नवीनाय (ववृत्याम्) वर्त्तयेयम्। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदं बहुलं छन्दसीति शपः श्लुः। (यः) (स्तोमेभिः) प्रशंसितैः कर्मभिः (वावृधे) वर्धते। अत्रान्येषामपीत्यभ्यासदीर्घः। (पूर्व्येभिः) पूर्वेषु साधुभिः (यः) (मध्यमेभिः) मध्ये भवैः (उत) (नूतनेभिः) नवीनैः ॥१३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या अतीतव्यवहारशेषज्ञतया मध्यमानां रक्षणेन नूतनेन प्रयत्नेन वर्धन्ते तेऽग्रे नवीनं नवीनं सुखं सम्पत्तुमर्हन्ति नेतरेऽलसा मूढाः ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे भूतकालीन व्यवहाराचे मर्म जाणून, मध्यम पुरुषांचे रक्षण करून, नवे (संबंध) प्रयत्नपूर्वक वाढवितात ती अन्य आळशी व मूर्ख माणसांसारखी नसतात. ॥ १३ ॥