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अ॒भि जैत्री॑रसचन्त स्पृधा॒नं महि॒ ज्योति॒स्तम॑सो॒ निर॑जानन्। तं जा॑न॒तीः प्रत्युदा॑यन्नु॒षासः॒ पति॒र्गवा॑मभव॒देक॒ इन्द्रः॑॥

English Transliteration

abhi jaitrīr asacanta spṛdhānam mahi jyotis tamaso nir ajānan | taṁ jānatīḥ praty ud āyann uṣāsaḥ patir gavām abhavad eka indraḥ ||

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Pad Path

अ॒भि। जैत्रीः॑। अ॒स॒च॒न्त॒। स्पृ॒धा॒नम्। महि॑। ज्योतिः॑। तम॑सः। निः। अ॒जा॒न॒न्। तम्। जा॒न॒तीः। प्रति॑। उत्। आ॒य॒न्। उ॒षसः॑। पतिः॑। गवा॑म्। अ॒भ॒व॒त्। एकः॑। इन्द्रः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:31» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सूर्यरूप अग्नि कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (जैत्रीः) जीतनेवाले (अभि) सन्मुख (असचन्त) अनुसार चलते हैं (तमसः) अन्धकार के (महि) बड़े (ज्योतिः) प्रकाशरूप (स्पृधानम्) पदार्थों के साथ किरणों के संघर्ष करनेवाले सूर्य को (निः) निरन्तर (अजानन्) जानें (तम्) उसको (जानतीः) जाननेवाली (उषासः) प्रातःकाल की वेलाओं के तुल्य (प्रति) (उत्) (आयन्) उद्योग करें वा प्राप्त हों जो (एकः) सहायरहित (इन्द्रः) सूर्य्य (गवाम्) किरणों का (पतिः) स्वामी (अभवत्) होवे उसके अनुसार चलते हैं ॥४॥
Connotation: - जैसे अन्धकार से ज्योति पृथक् होकर अन्धकार को दूर करती है, वैसे ही अविद्या से पृथक् हुई विद्या अविद्या का नाश करती है और जैसे एक सूर्य्य संपूर्ण किरणों का एक साथ ही पालन करता है, वैसे ही समभाव का आश्रय करके राजा प्रजाओं का पालन करे ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सूर्यरूपोऽग्निः कीदृश इत्याह।

Anvay:

ये जैत्रीरभ्यसचन्त तमसो महि ज्योतिः स्पृधानं निरजानन् तं जानतीरुषास इव प्रत्युदायन् य एक इन्द्रो गवां पतिरभवत्तमभ्यसचन्त ॥४॥

Word-Meaning: - (अभि) आभिमुख्ये (जैत्रीः) जयशीलाः (असचन्त) समवयन्ति (स्पृधानम्) स्पर्द्धमानम् (महि) महत् (ज्योतिः) प्रकाशः (तमसः) अन्धकारस्य (निः) नितराम् (अजानन्) जानीयुः (तम्) (जानतीः) ज्ञानवत्यः (प्रति) (उत्) (आयन्) आयान्त्युद्यन्ति प्रतियन्ति वा (उषासः) प्रभातान् (पतिः) स्वामी (गवाम्) किरणानाम् (अभवत्) भवेत् (एकः) असहायः (इन्द्रः) ॥४॥
Connotation: - यथाऽन्धकाराज्ज्योतिः पृथग्भूत्वाऽन्धकारं निवर्त्तयति तथा विद्याऽविद्यां हन्ति यथैकः सूर्य्यः सर्वेषां किरणानां समत्वेन पालकोऽस्ति तथैव समभावमाश्रित्य राजा प्रजाः पालयेत् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जशी अंधकारापासून ज्योती पृथक होऊन अंधकार दूर करते, तसेच अविद्येपासून पृथक झालेली विद्या अविद्येचा नाश करते व जसा एक सूर्य संपूर्ण किरणांद्वारे एकाच वेळी पालन करतो तसे समभावाने राजाने प्रजेचे पालन करावे. ॥ ४ ॥