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अ॒ग्निर्ज॑ज्ञे जु॒ह्वा॒३॒॑ रेज॑मानो म॒हस्पु॒त्राँ अ॑रु॒षस्य॑ प्र॒यक्षे॑। म॒हान्गर्भो॒ मह्या जा॒तमे॑षां म॒ही प्र॒वृद्धर्य॑श्वस्य य॒ज्ञैः॥

English Transliteration

agnir jajñe juhvā rejamāno mahas putrām̐ aruṣasya prayakṣe | mahān garbho mahy ā jātam eṣām mahī pravṛd dharyaśvasya yajñaiḥ ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। ज॒ज्ञे॒। जु॒ह्वा॑। रेज॑मानः। म॒हः। पु॒त्रान्। अ॒रु॒षस्य॑। प्र॒ऽयक्षे॑। म॒हान्। गर्भः॑। महि॑। आ। जा॒तम्। ए॒षा॒म्। म॒ही। प्र॒ऽवृत्। हरि॑ऽअश्वस्य। य॒ज्ञैः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:31» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे इन्धन और (जुह्वा) साधन और उपसाधनों से युक्त क्रिया से (अग्निः) अग्नि (जज्ञे) उत्पन्न होता है वैसे (रेजमानः) कंपता हुआ (महान्) बड़े उत्तम गुणों से युक्त (गर्भः) स्तुति करने योग्य पदार्थ उत्पन्न होता है और (अरुषस्य) नहीं हिंसा करनेवाले के (महः) श्रेष्ठ (पुत्रान्) सन्तानों के (प्रयक्षे) अत्यन्त यजन अर्थात् संगम करने को उत्पन्न होता है (प्रवृत्) प्रवृत्त होनेवाला (हर्यश्वस्य) जिसके हरणशील घोड़े उसके (यज्ञैः) योग्य कर्मों से (मही) श्रेष्ठ वाणी उत्पन्न होती है (एषाम्) इन सबों के (महि) बड़े (आ, जातम्) अच्छे प्रकार उत्पन्न कर्म को तुम जानो ॥३॥
Connotation: - जैसे शमी नामक काष्ठ के मध्य से अग्नि प्रकट होकर बड़े-बड़े कार्य्यों को सिद्ध करता है, वैसे ही सुपात्र पुत्र सम्पूर्ण उत्तमकर्मों को करते हैं, इससे ब्रह्मचर्य्य आदि संस्कारों के ही द्वारा सन्तानों को श्रेष्ठ बनाना चाहिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यथेन्धनेन जुह्वाऽग्निर्जज्ञे तथा रेजमानो महान् गर्भो जायते। अरुषस्य महः पुत्रान्प्रयक्षे जज्ञे प्रवृत्सन् हर्यश्वस्य यज्ञैर्महीर्जज्ञ एषां मह्या जातं यूयं विजानीत ॥३॥

Word-Meaning: - (अग्निः) (जज्ञे) जायते (जुह्वा) साधनोपसाधनयुक्तया क्रियया (रेजमानः) कम्पमानः (महः) महतः (पुत्रान्) सन्तानान् (अरुषस्य) अहिंसकस्य (प्रयक्षे) प्रकर्षेण यष्टुं सङ्गन्तुम् (महान्) महागुणविशिष्टः (गर्भः) स्तोतुमर्हः (महि) महान्तम् (आ) समन्तात् (जातम्) (एषाम्) (मही) महती वाक् (प्रवृत्) यः प्रवर्त्तते सः (हर्यश्वस्य) हरयो हरणशीला अश्वा यस्य (यज्ञैः) सङ्गतैः कर्मभिः ॥३॥
Connotation: - यथा शमीगर्भाद्वह्निः प्रादुर्भवन् महान्ति कार्य्याणि करोति तथैव सत्पुत्राः सर्वाण्युत्तमानि कर्माणि कुर्वन्ति तस्माद्ब्रह्मचर्यादिसंस्कारेणैव सन्तानाः सत्कर्त्तव्याः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा शमीनामक काष्ठामधून अग्नी प्रकट होऊन मोठमोठी कार्ये सिद्ध करतो तसेच सुपुत्र संपूर्ण उत्तम कर्म करतात. त्यासाठी ब्रह्मचर्य इत्यादी संस्कारांद्वारे संतानांना श्रेष्ठ बनविले पाहिजे. ॥ ३ ॥