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पि॒त्रे चि॑च्चक्रुः॒ सद॑नं॒ सम॑स्मै॒ महि॒ त्विषी॑मत्सु॒कृतो॒ वि हि ख्यन्। वि॒ष्क॒भ्नन्तः॒ स्कम्भ॑नेना॒ जनि॑त्री॒ आसी॑ना ऊ॒र्ध्वं र॑भ॒सं वि मि॑न्वन्॥

English Transliteration

pitre cic cakruḥ sadanaṁ sam asmai mahi tviṣīmat sukṛto vi hi khyan | viṣkabhnantaḥ skambhanenā janitrī āsīnā ūrdhvaṁ rabhasaṁ vi minvan ||

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Pad Path

पि॒त्रे। चि॒त्। च॒क्रुः॒। सद॑नम्। सम्। अ॒स्मै॒। महि॑। त्विषि॑ऽमत्। सु॒ऽकृतः॑। वि। हि। ख्यन्। वि॒ऽस्क॒भ्नन्तः॑। स्कम्भ॑नेन। जनि॑त्री॒ इति॑। आसी॑नाः। ऊ॒र्ध्वम्। र॒भ॒सम्। वि। मि॒न्व॒न्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:31» Mantra:12 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (सुकृतः) उत्तमधर्म सम्बन्धी कर्म करने और (विष्कभ्नन्तः) विशेष करके धारण करनेवाले महत्तत्त्व अर्थात् बुद्धि आदि की (जनित्री) उत्पन्न करनेवाली प्रकृति के सदृश (आसीनाः) स्थिर (स्कम्भनेन) धारण करने से (ऊर्ध्वम्) ऊँचे (रभसम्) वेग को (वि) (मिन्वन्) विशेष करके फेंकते और विद्या को (वि) (ख्यन्) प्रकाश करते वा (हि) जिसकारण (चित्) ही (अस्मै) इस (पित्रे) पालन करनेवाले के लिये (त्विषीमत्) बहुत कान्तियों से युक्त (महि) बड़े (सदनम्) स्थान को (सम्) (चक्रुः) सम्पन्न करें, वे कृतकृत्य विद्वान् होवें ॥१२॥
Connotation: - जैसे व्यापक प्रकृति के द्वारा महत्तत्त्व आदि को रचकर सम्पूर्ण जगत् को ईश्वर रचता है, वैसे ही विद्वान् जन पिता के सदृश वर्त्तमान होकर सम्पूर्ण जनों के लिये सुख धारण करते और पदार्थविद्या का प्रत्यक्ष अभ्यास करके शिक्षा देते हैं ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

ये सुकृतो विष्कभ्नन्तो महत्तत्त्वादीनां जनित्री प्रकृतिरिवासीनाः स्कम्भनेनोर्ध्वं रभसं विमिन्वन् विद्यां विख्यन् हि चिदप्यस्मै पित्रे त्विषीमन्महि सदनं संश्चक्रुस्ते कृतकृत्या विद्वांसः स्युः ॥१२॥

Word-Meaning: - (पित्रे) पालकाय (चित्) अपि (चक्रुः) कुर्य्युः (सदनम्) स्थानम् (सम्) (अस्मै) (महि) महत् (त्विषीमत्) बह्व्यस्त्विषयो दीप्तयो विद्यन्ते यस्मिँस्तत्। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (सुकृतः) ये शोभनानि धर्म्याणि कर्माणि कुर्वन्ति ते (वि) (हि) यतः (ख्यन्) प्रकाशयन्ति (विष्कभ्नन्तः) ये विशेषेण स्कभ्नन्ति धरन्ति ते (स्कम्भनेन) धारणेन। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (जनित्री) मातृवत्सर्वेषां महत्तत्त्वादीनामुत्पादिका (आसीनाः) स्थिराः (ऊर्ध्वम्) (रभसम्) वेगम् (वि) (मिन्वन्) विशेषेण प्रक्षिपन्ति ॥१२॥
Connotation: - यथा विभ्व्याः प्रकृतेः सकाशान्महत्तत्त्वादीनि निर्म्माय जगत्सर्वं जगदीश्वरो विदधाति तथैव विद्वांसः पितृवद्वर्त्तमानाः सन्तः सर्वार्थं सुखं विदधति पदार्थविद्यां साक्षात्कृत्योपदिशन्ति च ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे व्यापक प्रकृतीपासून महत्तत्त्व इत्यादी उत्पन्न करून ईश्वर संपूर्ण जगाला निर्माण करतो, तसेच विद्वान लोक पित्याप्रमाणे संपूर्ण लोकांना सुख देतात व पदार्थविद्येचा प्रत्यक्ष अभ्यास करून शिक्षण देतात. ॥ १२ ॥