Go To Mantra

शास॒द्वह्नि॑र्दुहि॒तुर्न॒प्त्यं॑ गाद्वि॒द्वाँ ऋ॒तस्य॒ दीधि॑तिं सप॒र्यन्। पि॒ता यत्र॑ दुहि॒तुः सेक॑मृ॒ञ्जन्त्सं श॒ग्म्ये॑न॒ मन॑सा दध॒न्वे॥

English Transliteration

śāsad vahnir duhitur naptyaṁ gād vidvām̐ ṛtasya dīdhitiṁ saparyan | pitā yatra duhituḥ sekam ṛñjan saṁ śagmyena manasā dadhanve ||

Mantra Audio
Pad Path

शास॑त्। वह्निः॑। दु॒हि॒तुः। न॒प्त्य॑म्। गा॒त्। वि॒द्वान्। ऋ॒तस्य॑। दीधि॑तिम्। स॒प॒र्यन्। पि॒ता। यत्र॑। दु॒हि॒तुः। सेक॑म्। ऋ॒ञ्जन्। सम्। श॒ग्म्ये॑न। मन॑सा। द॒ध॒न्वे॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:31» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तृतीय मण्डल में बाईस ऋचावाले ३१ वें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में अग्नि के गुणों का विषय कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् पुरुष ! (यत्र) जिस व्यवहार में (पिता) उत्पन्नकर्त्ता (वह्निः) वाहन करने अर्थात् व्यवहार में चलानेवाला (दुहितुः) कन्या के (सेकम्) सेचन को (ऋञ्जन्) सिद्ध करता हुआ (गात्) प्राप्त होवे उस व्यवहार में (विद्वान्) जानने योग्य व्यवहार का ज्ञाता (ऋतस्य) सत्य के (दीधितिम्) धारणकर्त्ता की (सपर्य्यन्) सेवा करता हुआ (दुहितुः) दूर में हितकारिणी कन्या के (नप्त्यम्) नाती में उत्पन्न हुए को (शासत्) शिक्षा देवे इससे (शग्म्येन) सुखों में वर्त्तमान (मनसा) अन्तःकरण से (सम्, दधन्वे) सम्यक् प्रसन्न होता है ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे पिता के समीप से कन्या उत्पन्न होती है, वैसे ही सूर्य्य से प्रातःकाल की वेला प्रकट होती है और जैसे पति अपनी स्त्री में गर्भ को धारण करता है, वैसे कन्या के सदृश वर्त्तमान प्रातःकाल की वेला में सूर्य्य किरणरूप वीर्य्य को धारण करता है, उससे दिवसरूप पुत्र उत्पन्न होता है ॥१॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ वह्निविषयमाह।

Anvay:

हे विद्वन् ! यत्र पिता वह्निर्दुहितुः सेकमृञ्जन् गात्तत्र विद्वानृतस्य दीधितिं सपर्यन् दुहितुर्नप्त्यं शासदतः शग्म्येन मनसा संदधन्वे ॥१॥

Word-Meaning: - (शासत्) शिष्यात् (वह्निः) वोढा (दुहितुः) कन्यायाः (नप्त्यम्) नप्तरि भवम्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति रलोपः। (गात्) प्राप्नुयात् (विद्वान्) यो वेदितव्यं वेत्ति (ऋतस्य) सत्यस्य (दीधितिम्) धर्तारम् (सपर्यन्) सेवमानः (पिता) जनकः (यत्र) यस्मिन् व्यवहारे (दुहितुः) दूरे हितायाः कन्यायाः (सेकम्) सेचनम् (ऋञ्जन्) संसाध्नुवन् (सम्) (शग्म्येन) शग्मेषु सुखेषु भवेन। शग्ममिति सुखनाम। निघं० ३। ६। (मनसा) अन्तःकरणेन (दधन्वे) प्रीणाति ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या यथा पितुः सकाशात्कन्योत्पद्यते तथैव सूर्य्यादुषा उत्पद्यते यथा पतिर्भार्यायां गर्भं दधाति तथैव कन्यावद्वर्त्तमानायामुषसि सूर्यः किरणाख्यं वीर्य्यं दधाति तेन दिवसरूपमपत्यमुत्पद्यते ॥१॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी, विद्वान, राजाची सेना, मित्र, वाणी, उपदेशकर्ता व प्रजेच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो! जशी कन्या पित्यापासून उत्पन्न होते तसेच सूर्यापासून प्रातःकाळची वेळ प्रकट होते. जसा पती आपल्या स्त्रीमध्ये गर्भधारणा करतो तसे सूर्य उषेला किरणरूपी वीर्य देतो व त्यापासून दिवसरूपी पुत्र उत्पन्न होतो. ॥ १ ॥