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उ॒ताभ॑ये पुरुहूत॒ श्रवो॑भि॒रेको॑ दृ॒ळ्हम॑वदो वृत्र॒हा सन्। इ॒मे चि॑दिन्द्र॒ रोद॑सी अपा॒रे यत्सं॑गृ॒भ्णा म॑घवन्का॒शिरित्ते॑॥

English Transliteration

utābhaye puruhūta śravobhir eko dṛḻham avado vṛtrahā san | ime cid indra rodasī apāre yat saṁgṛbhṇā maghavan kāśir it te ||

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Pad Path

उ॒त। अभ॑ये। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। श्रवः॑ऽभिः। एकः॑। दृ॒ळ्हम्। अ॒व॒दः॒। वृ॒त्र॒ऽहा। सन्। इ॒मे। चि॒त्। इ॒न्द्र॒। रोद॑सी॒ इति॑। अ॒पा॒रे इति॑। यत्। स॒म्ऽगृ॒भ्णाः। म॒घ॒व॒न्। का॒शिः। इत्। ते॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:30» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (पुरुहूत) बहुत जनों से प्रशंसित (मघवन्) बहुत धन से युक्त (इन्द्र) सूर्य्य के तुल्य प्रकाशमान ! आप (एकः) विना सहाय स्वयं बलवान् (सन्) हुए (अभये) भय से रहित व्यवहार में (श्रवोभिः) अनेक प्रकार के सुनने योग्य वचनों के सहित (दृढम्) निश्चय (अवदः) बोलें (उत) और भी जैसे (वृत्रहा) सूर्य्य (चित्) भी (इमे) इन (अपारे) अवधिरहित (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को प्राप्त होता है वैसे होकर (यत्) जो (ते) आपके (काशिः) न्याय विनय आदि उत्तम गुणों का प्रकाश है उसको (इत्) ही (सङ्गृभ्णाः) ग्रहण करें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। राजा के पुरुषों को चाहिये कि अनेक प्रकार के उपायों से प्रजाओं में उपद्रवों से भय का नाश और सूर्य के तुल्य न्यायविद्या का प्रकाश करें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे पुरुहूत मघवन्निन्द्र त्वमेकस्सन्नभये श्रवोभिः सह दृढमवद उतापि यथा वृत्रहा सूर्य्यश्चिदिमे अपारे रोदसी सङ्गृह्णाति तथाभूतः सन् यद्या ते काशिरस्ति तामित्सङ्गृभ्णाः ॥५॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (अभये) भयरहिते व्यवहारे (पुरुहूत) बहुभिः प्रशंसित (श्रवोभिः) अनेकविधैः श्रवणैः (एकः) असहायः (दृढम्) (अवदः) वदेः (वृत्रहा) सूर्यवत् (सन्) (इमे) (चित्) अपि (इन्द्र) सूर्य्यवद्वर्त्तमान (रोदसी) द्यावापृथिवी (अपारे) अविद्यमानाऽवधी (यत्) या (सङ्गृभ्णाः) सङ्गृह्णीयाः (मघवन्) बहुधनयुक्त (काशिः) न्यायविनयादिशुभगुणप्रदीप्तिः (इत्) एव (ते) तव ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। राजपुरुषैरनेकोपायैः प्रजासु निर्भयता संपादनीया सूर्य्यवन्न्यायविद्या प्रकाशनीया ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. राजपुरुषांनी अनेक प्रकारच्या उपायाने प्रजेमध्ये निर्भयता उत्पन्न करून सूर्याप्रमाणे न्यायविद्येचा प्रकाश करावा. ॥ ५ ॥