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महि॒ ज्योति॒र्निहि॑तं व॒क्षणा॑स्वा॒मा प॒क्वं च॑रति॒ बिभ्र॑ती॒ गौः। विश्वं॒ स्वाद्म॒ संभृ॑तमु॒स्रिया॑यां॒ यत्सी॒मिन्द्रो॒ अद॑धा॒द्भोज॑नाय॥

English Transliteration

mahi jyotir nihitaṁ vakṣaṇāsv āmā pakvaṁ carati bibhratī gauḥ | viśvaṁ svādma sambhṛtam usriyāyāṁ yat sīm indro adadhād bhojanāya ||

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Pad Path

महि॑। ज्योतिः॑। निऽहि॑तम्। व॒क्षणा॑सु। आ॒मा। प॒क्वम्। च॒र॒ति॒। बिभ्र॑ती। गौः। विश्व॑म्। स्वाद्म॑। सम्ऽभृ॑तम् उ॒स्रिया॑याम्। यत्। सी॒म्। इन्द्रः॑। अद॑धात्। भोज॑नाय॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:30» Mantra:14 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:3» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (यत्) जो (गौः) चलनेवाली (वक्षणासु) बहती हुई नदियों में (आमा) कच्चे वा (पक्वम्) पके हुए को (बिभ्रती) धारण करती हुई (चरति) चलती है जो इस संसार में (महि) बड़ा (निहितम्) स्थित (ज्योतिः) तेज वा (उस्रियायाम्) पृथिवी में (विश्वम्) संपूर्ण (स्वाद्म) अतिस्वादुवाले (सम्भृतम्) उत्तम प्रकार, धारण वा पोषण किये हुए पदार्थ को प्राप्त होती है वह (इन्द्रः) बिजुली (भोजनाय) पालन वा भोजन के लिये सबको (सीम्) सब ओर से (अदधात्) धारण करती है, यह सब जनों को जानना चाहिये ॥१४॥
Connotation: - जो बिजुली भूमि जल वायु और अन्तरिक्ष तथा उनके विकारों और पदार्थों में व्यापक हो और सबको धारण कर पालन करती है, उसकी विद्या को सब लोग धारण वा स्वीकार करें ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यथा गौर्वक्षणास्वामा पक्वं बिभ्रती चरति यदत्र महि निहितं ज्योतिरुस्रियायां विश्वं स्वाद्म सम्भृतं चरति स इन्द्रो भोजनाय सर्वं सीमदधादिति सर्वैर्वेद्यम् ॥१४॥

Word-Meaning: - (महि) महत् (ज्योतिः) तेजः (निहितम्) स्थितम् (वक्षणासु) वहमानासु नदीषु। वक्षणा इति नदीना०। निघं० १। १३। (आमा) आमानि (पक्वम्) (चरति) गच्छति (बिभ्रती) धरन्ती (गौः) या गच्छति सा (विश्वम्) सर्वम् (स्वाद्म) अतिस्वादुमत् (सम्भृतम्) सम्यग्धृतं पोषितं वा (उस्रियायाम्) पृथिव्याम् (यत्) या (सीम्) सर्वतः (इन्द्रः) विद्युत् (अदधात्) दधाति (भोजनाय) पालनायाऽभ्यवहरणाय वा ॥१४॥
Connotation: - यो विद्युद्भूम्यब्वाय्वन्तरिक्षेषु तद्विकारेषु पदार्थेषु च व्याप्य सर्वं धृत्वा पालयति तस्या विद्यां सर्वे स्वीकुर्वन्तु ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी विद्युत भूमी, जल, वायू व अंतरिक्ष आणि त्याच्या विकारात व पदार्थात व्यापक असते, तसेच सर्वांना धारण करून पालन करते तिची विद्या सर्व लोकांनी स्वीकारावी. ॥ १४ ॥