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इ॒च्छन्ति॑ त्वा सो॒म्यासः॒ सखा॑यः सु॒न्वन्ति॒ सोमं॒ दध॑ति॒ प्रयां॑सि। तिति॑क्षन्ते अ॒भिश॑स्तिं॒ जना॑ना॒मिन्द्र॒ त्वदा कश्च॒न हि प्र॑के॒तः॥

English Transliteration

icchanti tvā somyāsaḥ sakhāyaḥ sunvanti somaṁ dadhati prayāṁsi | titikṣante abhiśastiṁ janānām indra tvad ā kaś cana hi praketaḥ ||

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Pad Path

इ॒च्छन्ति॑। त्वा॒। सो॒म्यासः॑। सखा॑यः। सु॒न्वन्ति॑। सोम॑म्। दध॑ति। प्रयां॑सि। तिति॑क्षन्ते। अ॒भिऽश॑स्तिम्। जना॑नाम्। इन्द्र॑। त्वत्। आ। कः। च॒न। हि। प्र॒ऽके॒तः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:30» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तृतीयाष्टक के द्वितीय अध्याय और तीसरे मण्डल में बाईस ऋचावाले तीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र से विद्वान् के कर्त्तव्य का उपदेश करते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) परमऐश्वर्य के दाता ! जो (सोम्यासः) परस्पर स्नेह रस के वर्द्धक (सखायः) मित्रभाव से वर्त्तमान (त्वा) आपकी (इच्छन्ति) इच्छा करते हैं वे (सोमम्) परम ऐश्वर्य को (सुन्वन्ति) सिद्ध करते (प्रयांसि) कामना करने योग्य वस्तुओं को (दधति) धारण करते और (जनानाम्) मनुष्य लोगों की (अभिशस्तिम्) चारों ओर से हिंसा को (आ) (तितक्षन्ते) सहते हैं (हि) जिससे (त्वत्) आपसे अन्य (कः) (चन) कोई भी पुरुष (प्रकेतः) उत्तम बुद्धिवाला नहीं है, इससे इन मनुष्यों की सर्वदा रक्षा कीजिये ॥१॥
Connotation: - जो लोग परस्पर मित्रभाव से वर्त्ताव करते हुए प्रयत्न के साथ ऐश्वर्य की इच्छा करते हैं, वे सुख दुःख निन्दा आदि को सह और विद्वानों का सङ्ग करके आनन्द को बढ़ावें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विदुषः कृत्यमुपदिश्यते।

Anvay:

हे इन्द्र ! ये सोम्यासः सखायस्त्वेच्छन्ति ते सोमं सुन्वन्ति प्रयांसि दधति जनानामभिशस्तिमा तितिक्षन्ते हि यतस्त्वदन्यः कश्चन प्रकेतो नास्ति तस्मादेतान्सर्वदा रक्ष ॥१॥

Word-Meaning: - (इच्छन्ति) (त्वा) त्वाम् (सोम्यासः) (सखायः) (सुन्वन्ति) निष्पादयन्ति (सोमम्) परमैश्वर्य्यम् (दधति) (प्रयांसि) कमनीयानि वस्तूनि (तितिक्षन्ते) सहन्ते (अभिशस्तिम्) अभितो हिंसाम् (जनानाम्) मनुष्याणाम् (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (त्वत्) तव सकाशात् (आ) (कः) (चन) कश्चिदपि (हि) यतः (प्रकेतः) प्रकृष्टा केतः प्रज्ञा यस्य सः ॥१॥
Connotation: - ये सुहृदो भूत्वा प्रयत्नेनैश्वर्यमिच्छन्ति ते सुखदुःखनिन्दादिकं सोढ्वा विद्वत्सङ्गं कृत्वाऽऽनन्दं वर्धयेयुः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र व विद्वानांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तात सांगितलेल्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे लोक परस्पर मित्रभावाने वागून प्रयत्नाने ऐश्वर्याची इच्छा बाळगतात त्यांनी सुख, दुःख, निंदा इत्यादी सहन करून विद्वानांच्या संगतीने आनंद वाढवावा. ॥ १ ॥