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वि॒श्पतिं॑ य॒ह्वमति॑थिं॒ नरः॒ सदा॑ य॒न्तारं॑ धी॒नामु॒शिजं॑ च वा॒घता॑म्। अ॒ध्व॒राणां॒ चेत॑नं जा॒तवे॑दसं॒ प्र शं॑सन्ति॒ नम॑सा जू॒तिभि॑र्वृ॒धे॥

English Transliteration

viśpatiṁ yahvam atithiṁ naraḥ sadā yantāraṁ dhīnām uśijaṁ ca vāghatām | adhvarāṇāṁ cetanaṁ jātavedasam pra śaṁsanti namasā jūtibhir vṛdhe ||

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Pad Path

वि॒श्पति॑म्। य॒ह्वम्। अति॑थिम्। नरः॑। सदा॑। य॒न्तार॑म्। धी॒नाम्। उ॒शिज॑म्। च॒। वा॒घता॑म्। अ॒ध्व॒राणा॑म्। चेत॑नम्। जा॒तऽवे॑दस॑म्। प्र। शं॒स॒न्ति॒। नम॑सा। जू॒तिऽभिः॑। वृ॒धे॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:3» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:21» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (नरः) अपने आत्मा, इन्द्रियाँ और शरीरों को धर्म की ओर पहुँचानेवाले जन (वृधे) वृद्धि के लिये (जूतिभिः) वेगादि गुणों से (विश्पतिम्) समस्त प्रजा के पालनेवाले (यह्वम्) बड़े (यन्तारम्) नियन्ता अर्थात् सब कामों को यथानियम पहुँचानेवाले (अतिथिम्) अतिथि के समान सत्कार करने योग्य (धीनाम्) उत्तम कर्म और बुद्धियों वा (वाघताम्) बुद्धिमान् (च) और (अध्वराणाम्) अहिंसनीय व्यवहारों के बीच (उशिजम्) कामना की ओर (जातवेदसम्) उत्पन्न हुए सब पदार्थों में अपनी व्याप्ति से विद्यमान अथवा उत्पन्न हुए समस्त पदार्थों को जाननेवाले (चेतनम्) अच्छे प्रकार ज्ञानस्वरूप परमात्मा की (नमसा) सत्कार से (सदा) सदैव (प्र, शंसन्ति) प्रशंसा करते हैं, वे ब्रह्मवेत्ता होते हैं ॥८॥
Connotation: - मनुष्यों को आप्त विद्वानों ने =से स्तुति किया हुआ महान् प्रजापालक ज्ञानस्वरूप परमेश्वर स्तुति करने योग्य है, इसकी उपासना के विना किसी को पूरा लाभ प्राप्त नहीं होता ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

ये नरो वृधे जूतिभिर्विश्पतिं यह्वं यन्तारमतिथिं धीनां वाघतामध्वराणां चोशिजं जातवेदसं चेतनं परमात्मानं नमसा सदा प्रशंसन्ति ते ब्रह्मविदो भवन्ति ॥८॥

Word-Meaning: - (विश्पतिम्) विशः सर्वस्याः प्रजायाः पालकं स्वामिनम् (यह्वम्) महान्तम् (अतिथिम्) अतिथिवत् सत्कर्तव्यम् (नरः) स्वात्मेन्द्रियशरीराणि धर्मं प्रति नेतारः (सदा) (यन्तारम्) नियन्तारमुपरतम् (धीनाम्) सत्कर्मणां प्रज्ञानाम् च (उशिजम्) कामयमानम् (च) (वाघताम्) मेधाविनाम् (अध्वराणाम्) अहिंसनीयानाम् (चेतनम्) सम्यग् ज्ञानस्वरूपम् (जातवेदसम्) यो जातेषु सर्वेषु स्वव्याप्त्या विद्यतेऽथवा जातान् सर्वान् पदार्थान् वेत्ति तम् (प्रशंसन्ति) स्तुवन्ति (नमसा) सत्कारेण (जूतिभिः) वेगादिभिर्गुणैः (वृधे) वर्धनाय ॥८॥
Connotation: - मनुष्यैराप्तैर्विद्वद्भिः स्तुतो महान् प्रजापालको ज्ञानस्वरूपः परमेश्वरः स्तोतव्योऽस्ति नैतदुपासनेन विना कञ्चित्पूर्णो लाभः प्राप्नोति ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - आप्त विद्वानांनी स्तुती केलेला, महान प्रजापालक, ज्ञानस्वरूप परमेश्वर स्तुती करण्यायोग्य आहे. माणसांनी त्याची उपासना केल्याशिवाय पूर्ण लाभ मिळू शकत नाही. ॥ ८ ॥