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च॒न्द्रम॒ग्निं च॒न्द्रर॑थं॒ हरि॑व्रतं वैश्वान॒रम॑प्सु॒षदं॑ स्व॒र्विद॑म्। वि॒गा॒हं तूर्णिं॒ तवि॑षीभि॒रावृ॑तं॒ भूर्णिं॑ दे॒वास॑ इ॒ह सु॒श्रियं॑ दधुः॥

English Transliteration

candram agniṁ candrarathaṁ harivrataṁ vaiśvānaram apsuṣadaṁ svarvidam | vigāhaṁ tūrṇiṁ taviṣībhir āvṛtam bhūrṇiṁ devāsa iha suśriyaṁ dadhuḥ ||

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Pad Path

च॒न्द्रम्। अ॒ग्निम्। च॒न्द्रऽर॑थम्। हरि॑ऽव्रतम्। वै॒श्वा॒न॒रम्। अ॒प्सु॒ऽसद॑म्। स्वः॒ऽविद॑म्। वि॒ऽगा॒हम्। तूर्णि॑म्। तवि॑षीभिः। आऽवृ॑तम्। भूर्णि॑म्। दे॒वासः॑। इ॒ह। सु॒ऽश्रिय॑म्। द॒धुः॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:3» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अग्नि विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (देवासः) विद्वान् जन (इह) इस संसार के बीच (चन्द्ररथम्) जिससे चन्द्रमा के समान रथ बनता है (हरिव्रतम्) वा जिसके घोड़े शीलरूप (अप्सुसदम्) वा प्राण और जलों में स्थिर होता (स्वर्विदम्) वा जिससे जीव सुख को प्राप्त होता (विगाहम्) वा जिसके निमित्त से विविध प्रकार के पदार्थों को विलोडता वा (तूर्णिम्) जो शीघ्र गमन करानेवाला (तविषीभिः) बलादि गुणों के साथ (आवृतम्) संयुक्त (भूर्णिम्) और पदार्थों का धारण करनेवाला (सुश्रियम्) जिससे उत्तम श्री लक्ष्मी उत्पन्न होती वा (वैश्वानरम्) समस्त प्राप्त पदार्थों में व्याप्त (चन्द्रम्) आनन्द करनेवाला निरन्तर प्रकाशमान (अग्निम्) अग्नि को (दधुः) धारण करें वैसे इसको तुम भी धारण करो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जब तक पदार्थ-विद्या में अग्नि-विद्या न हो, तब तक आभूषणरहित स्त्री के समान नहीं शोभती है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाग्निविषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यथा देवास इह चन्द्ररथं हरिव्रतमप्सुसदं स्वर्विदं विगाहं तूर्णिन्तविषीभिरावृतं भूर्णिं सुश्रियं वैश्वानरं चन्द्रमग्निं दधुस्तथैनं यूयमपि धरत ॥५॥

Word-Meaning: - (चन्द्रम्) आनन्दकरं देदीप्यमानं सुवर्णमिव वर्त्तमानम्। चन्द्रमिति हिरण्यनाम। निघं०१। २। (अग्निम्) वह्निम् (चन्द्ररथम्) चन्द्रमिव रथं यस्य तम् (हरिव्रतम्) हरयोऽश्वा व्रतं शीलं यस्य तम् (वैश्वानरम्) सर्वेषु नरेषु नीतेषु प्राप्तेषु पदार्थेषु व्याप्तम् (अप्सुसदम्) योऽप्सु प्राणेषु जलेषु वा सीदति तम् (स्वर्विदम्) स्वः सुखं विन्दति यस्मात्तम् (विगाहम्) विविधान् पदार्थान् गाहन्ते विलोडयन्ति येन तम् (तूर्णिम्) सद्योगमकम् (तविषीभिः) बलादिभिर्गुणैः (आवृतम्) संयुक्तम् (भूर्णिम्) धर्त्तारम् (देवासः) विद्वांसः (इह) अस्मिन् जगति (सुश्रियम्) शोभना श्रीर्यस्मात्तम् (दधुः) धरन्तु ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यावत्पदार्थविद्याष्वग्निविद्या न स्यात्तावदनलंकृता स्त्रीव न शोभते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जोपर्यंत पदार्थ विद्येत अग्निविद्या नसते तोपर्यंत ती आभूषणरहित स्त्रीप्रमाणे असते. ॥ ५ ॥