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अ॒न्तर्दू॒तो रोद॑सी द॒स्म ई॑यते॒ होता॒ निष॑त्तो॒ मनु॑षः पु॒रोहि॑तः। क्षयं॑ बृ॒हन्तं॒ परि॑ भूषति॒ द्युभि॑र्दे॒वेभि॑र॒ग्निरि॑षि॒तो धि॒याव॑सुः॥

English Transliteration

antar dūto rodasī dasma īyate hotā niṣatto manuṣaḥ purohitaḥ | kṣayam bṛhantam pari bhūṣati dyubhir devebhir agnir iṣito dhiyāvasuḥ ||

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Pad Path

अ॒न्तः। दू॒तः। रोद॑सी॒ इति॑। द॒स्मः। ई॒य॒ते॒। होता॑। निऽस॑त्तः। मनु॑षः। पु॒रःऽहि॑तः। क्षय॑म्। बृ॒हन्त॑म्। परि॑। भू॒ष॒ति॒। द्युऽभिः॑। दे॒वेभिः॑। अ॒ग्निः। इ॒षि॒तः। धि॒याऽव॑सुः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:3» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:20» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! आप जैसे (होता) ग्रहण करनेवाला (निषत्तः) निश्चित स्थित (मनुषः) मनुष्यों का (पुरोहितः) पहिले हित करनेवाला (धियावसुः) जो प्रबल बुद्धियों और कर्मों को वास देता (इषितः) ढूँढा हुआ (दस्मः) मूर्तिमान् पदार्थों का छिन्न-भिन्न करनेहारा और (अन्तः) बीच में (दूतः) दूत के समान वर्त्तमान (अग्निः) अग्नि (द्युभिः) देदीप्यमान (देवेभिः) किरणों के साथ (रोदसी) प्रकाश और पृथिवी को (ईयते) प्राप्त होता और (बृहन्तम्) महान् (क्षयम्) निवासस्थान को (परि, भूषति) सब ओर से भूषित करता है, वैसे तुमको सब मनुष्य सुभूषित करने चाहिये ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को देश के अवयवों को प्राप्त होकर उत्तम विद्याध्ययन, अध्यापन और उपदेशादि कर्मों के साथ समस्त मनुष्य सुभूषित करने चाहिये और इससे सबका हित सिद्ध करना चाहिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वांसो भवन्तो यथा होता निषत्तो मनुषः पुरोहितो धियावसुरिषितो दस्मोऽन्तर्दूतोऽग्निर्द्युभिर्देवेभिः सह रोदसी ईयते बृहन्तं क्षयं परिभूषति तथा युष्माभिः सर्वे मनुष्यास्सभूषणीयाः ॥२॥

Word-Meaning: - (अन्तः) मध्ये (दूतः) दूत इव वर्त्तमानः (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (दस्मः) मूर्त्तद्रव्याणामुपक्षयिता (ईयते) प्राप्नोति (होता) आदाता (निषत्तः) निषण्णो निश्चितः स्थितः (मनुषः) मनुष्याणाम् (पुरोहितः) पुरस्ताद्धितकारी (क्षयम्) निवासस्थानम् (बृहन्तरम्) महान्तम् (परि) सर्वतः (भूषति) अलंकरोति (द्युभिः) देदीप्यमानैः (देवेभिः) किरणैः (अग्निः) पावकः (इषितः) अन्वेषितः (धियावसुः) यः प्रज्ञाः कर्माणि च वासयति सः ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्देशावयवान् प्राप्य सोत्तमैर्विद्याध्यापनोपदेशादिभिः कर्मभिः सर्वे मनुष्याः सुभूषणीयाः। अनेन सर्वेषां हितं संपादनीयम् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी देशोदेशी उत्तम विद्याध्ययन, अध्यापन व उपदेश इत्यादी कर्म करून संपूर्ण मानवजातीला भूषणावह ठरावे. त्यामुळे सर्वांचे हित साधले पाहिजे. ॥ २ ॥