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वै॒श्वा॒न॒रस्य॑ दं॒सना॑भ्यो बृ॒हदरि॑णा॒देकः॑ स्वप॒स्यया॑ क॒विः। उ॒भा पि॒तरा॑ म॒हय॑न्नजायता॒ग्निर्द्यावा॑पृथि॒वी भूरि॑रेतसा॥

English Transliteration

vaiśvānarasya daṁsanābhyo bṛhad ariṇād ekaḥ svapasyayā kaviḥ | ubhā pitarā mahayann ajāyatāgnir dyāvāpṛthivī bhūriretasā ||

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Pad Path

वै॒श्वा॒न॒रस्य॑। दं॒सना॑भ्यः। बृ॒हत्। अरि॑णात्। एकः॑। सु॒ऽअ॒प॒स्यया॑। क॒विः। उ॒भा। पि॒तरा॑। म॒हय॑न्। अ॒जा॒य॒त॒। अ॒ग्निः। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। भूरि॑ऽरेतसा॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:3» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:21» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (एकः) एकाकी (कविः) सर्वशास्त्रों को जाननेवाला (स्वपस्यया) अपने को उत्तम की इच्छा से (वैश्वानरस्य) सर्वत्र प्रकाशमान अग्नि को (दंसनाभ्यः) सुख करनेवाली क्रियाओं से (बृहत्) महान् कार्य को (अरिणात्) प्राप्त होवे वा (अग्निः) अग्नि (भूरिरेतसा) बहुत जल जिसमें विद्यमान उस अन्तरिक्ष के साथ वर्त्तमान (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी को प्रकाशित करता हुआ (अजायत) प्रसिद्ध होता है वैसे (उभा) दोनों (पितरा) माता-पिता को (महयन्) सत्कार करता हुआ वर्त्तमान है, वह सुखी कैसे न होवे? ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विद्वानों के तुल्य कर्म और माता-पिताओं का सत्कार करते, वे पृथिवी और सूर्य के समान उत्तम गुणवाले होते हैं ॥११॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ संगति समझनी चाहिये ॥११॥ यह तीसरा सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

य एकः कविः स्वपस्यया वैश्वानरस्य दंसनाभ्यो बृहदरिणाद्यथाग्निर्भूरिरेतस सह वर्त्तमानो द्यावापृथिवी प्रकाशयन्नजायत तथोभा पितरा महयन् वर्त्तेते स सुखी कथन्न जायेत ॥११॥

Word-Meaning: - (वैश्वानरस्य) सर्वत्र राजमानस्य (दंसनाभ्यः) सुखकरक्रियाभ्यः (बृहत्) महत् (अरिणात्) प्राप्नुयात् (एकः) असहायः (स्वपस्यया) आत्मनः सुष्ठुकर्मण इच्छया (कविः) सर्वशास्त्रवित् (उभा) द्वौ (पितरा) पालकौ (महयन्) सत्कुर्वन् (अजायत) जायते (अग्निः) पावकः (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (भूरिरेतसा) भूरीणि बहूनि रेतांसि उदकानि यस्मिन्नन्तरिक्षे तेन ॥११॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये जना विद्वत्क्रियाकरा जनकजननीनां सत्कर्त्तारः सन्ति ते भूमिसूर्यवद्दिव्यगुणा भवन्तीति ॥११॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति तृतीयं सूक्तमेकविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे विद्वानांप्रमाणे कर्म करतात आणि माता-पित्याचा सत्कार करतात ती पृथ्वी व सूर्याप्रमाणे उत्तम गुण असणारी असतात. ॥ ११ ॥