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अ॒यं ते॒ योनि॑र्ऋ॒त्वियो॒ यतो॑ जा॒तो अरो॑चथाः। तं जा॒नन्न॑ग्न॒ आ सी॒दाथा॑ नो वर्धया॒ गिरः॑॥

English Transliteration

ayaṁ te yonir ṛtviyo yato jāto arocathāḥ | taṁ jānann agna ā sīdāthā no vardhayā giraḥ ||

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Pad Path

अ॒यम्। ते॒। योनिः॑। ऋ॒त्वियः॑। यतः॑। जा॒तः। अरो॑चथाः। तम्। जा॒नन्। अ॒ग्ने॒। आ। सी॒द॒। अथ॑। नः॒। व॒र्ध॒य॒। गिरः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:29» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:33» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी विद्वान् पुरुष ! जो (ते) आप का (अयम्) यह अग्नि आदि पदार्थ विद्या के ज्ञान का आधार (ऋत्वियः) समयों के योग्य (योनिः) सुख का घर है (यतः) जहाँ से (जातः) प्रकट हुआ (अरोचथाः) प्रकाशित हो (तम्) उसको (जानन्) जानते हुए यहाँ (आ) (सीद) स्थिर होइये और (अथ) इसके अनन्तर (नः) हम लोगों की (गिरः) विद्या और उत्तम शिक्षायुक्त वाणियों की (वर्धय) उन्नति कीजिये ॥१०॥
Connotation: - मनुष्यों को उचित है कि जिस-जिस कर्म से शरीर आत्मा और ऐश्वर्य्यों की वृद्धि हो, वह-वह कर्म सब काल में करें ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने विद्वन् यस्तेऽयमृत्वियो योनिरस्ति यतो जातः सन्नरोचथास्तं जानन्नत्राऽऽसीद। अथ नो गिरो वर्धय ॥१०॥

Word-Meaning: - (अयम्) अग्न्यादिपदार्थविद्याविज्ञानाधिष्ठानम् (ते) तव (योनिः) सुखगृहम् (ऋत्वियः) य ऋतूनर्हति सः (यतः) (जातः) प्रकटः सन् (अरोचथाः) रोचस्व (तम्) (जानन्) (अग्ने) पावक इव (आ) (सीद) स्थिरो भव (अथ) आनन्तर्य्ये। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (वर्धय) उन्नय। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (गिरः) विद्यासुशिक्षायुक्ता वाचः ॥१०॥
Connotation: - मनुष्यैर्येन येन कर्मणा शरीरात्मैश्वर्य्याणां वृद्धिः स्यात्तत्तत्कर्म सदाचरणीयम् ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या ज्या कर्माने शरीर, आत्मा व ऐश्वर्याची वृद्धी होईल ते ते कर्म माणसांनी सदैव करावे. ॥ १० ॥