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अ॒ग्निर॑स्मि॒ जन्म॑ना जा॒तवे॑दा घृ॒तं मे॒ चक्षु॑र॒मृतं॑ म आ॒सन्। अ॒र्कस्त्रि॒धातू॒ रज॑सो वि॒मानोऽज॑स्रो घ॒र्मो ह॒विर॑स्मि॒ नाम॑॥

English Transliteration

agnir asmi janmanā jātavedā ghṛtam me cakṣur amṛtam ma āsan | arkas tridhātū rajaso vimāno jasro gharmo havir asmi nāma ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। अ॒स्मि॒। जन्म॑ना। जा॒तऽवे॑दाः। घृ॒तम्। मे॒। चक्षुः॑। अ॒मृत॑म्। मे॒। आ॒सन्। अ॒र्कः। त्रि॒ऽधातुः॑। रज॑सः। वि॒ऽमानः॑। अज॑स्रः। घ॒र्मः। ह॒विः। अ॒स्मि॒। नाम॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:26» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:27» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को विद्युत् के तुल्य वर्त्तना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (अग्निः) अग्नि के सदृश (जन्मना) जन्म से (जातवेदः) ज्ञानयुक्त मैं (अस्मि) वर्त्तमान हूँ (मे) मेरा (चक्षुः) नेत्र इन्द्रिय (घृतम्) प्रकाशमान (मे) मेरे (आसन्) सुख में (अमृतम्) अमृतस्वरूप रस हो जैसे (रजसः) लोक समूह का (विमानः) अनेक प्रकार के मानसहित (त्रिधातुः) तीन धातुओं से युक्त (अर्कः) वज्र वा बिजुली (अजस्रः) निरन्तर चलनेवाला (घर्मः) प्रदीप्त सूर्य्य (हविः) हवन सामग्री है वैसे ही (नाम) प्रसिद्ध मैं (अस्मि) हूँ ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि बिजुली के सदृश कार्य्य सिद्धि का धारण रोग का नाशकारक भोजन करना और शत्रुओं का निवारण करें, तो बिजुली का फल प्राप्त होवे ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्युद्वन्मनुष्यैर्वर्त्तितव्यमित्युपदिश्यते।

Anvay:

हे मनुष्या यथाग्निरिव जन्मना जातवेदा अहमस्मि मे चक्षुर्घृतं प्रदीप्तं म आसन्नमृतं भवेत्। यथा रजसो विमानो त्रिधातुरर्कोऽजस्रो घर्मो हविरस्ति तथा नामाहमस्मि ॥७॥

Word-Meaning: - (अग्निः) पावक इव (अस्मि) (जन्मना) (जातवेदाः) जातवित्तः (घृतम्) प्रदीप्तम् (मे) मम (चक्षुः) चष्टे नेनेक्ति नेत्रेन्द्रियम् (अमृतम्) अमृतात्मकरसम् (मे) मम (आसन्) आस्ये (अर्कः) वज्रो विद्युद्वा। अर्क इति वज्रना०। निघं० २। २०। (त्रिधातुः) त्रयो धातवो यस्मिन्सः (रजसः) लोकसमूहस्य (विमानः) विविधं मानं यस्य सः (अजस्रः) निरन्तरं गन्ता (घर्मः) प्रदीप्तो दिवसकरः (हविः) (अस्मि) (नाम) प्रसिद्धौ ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्विद्युद्वत्कार्य्यसिद्धिधारणं रोगविनाशकाऽऽहारकरणं शत्रुनिवारणं च कर्त्तव्यं येन विद्युत्फलमापतेत् ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी विद्युतप्रमाणे कार्यसिद्धी करून रोगाचा नाश करणारे भोजन करावे व शत्रूंचे निवारण करावे, तेव्हा विद्युतचे फळ प्राप्त होते. ॥ ७ ॥