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अ॒ग्नि॒श्रियो॑ म॒रुतो॑ वि॒श्वकृ॑ष्टय॒ आ त्वे॒षमु॒ग्रमव॑ ईमहे व॒यम्। ते स्वा॒निनो॑ रु॒द्रिया॑ व॒र्षनि॑र्णिजः सिं॒हा न हे॒षक्र॑तवः सु॒दान॑वः॥

English Transliteration

agniśriyo maruto viśvakṛṣṭaya ā tveṣam ugram ava īmahe vayam | te svānino rudriyā varṣanirṇijaḥ siṁhā na heṣakratavaḥ sudānavaḥ ||

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Pad Path

अ॒ग्नि॒ऽश्रियः॑। म॒रुतः॑। वि॒श्वऽकृ॑ष्टयः। आ। त्वे॒षम्। उ॒ग्रम्। अवः॑। ई॒म॒हे॒। व॒यम्। ते। स्वा॒निनः॑। रु॒द्रियाः॑। व॒र्षऽनि॑र्निजः। सिं॒हाः। न। हे॒षऽक्र॑तवः। सु॒ऽदान॑वः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:26» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वायु आदि से क्या सिद्ध करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (वयम्) हम लोग जो (विश्वकृष्टयः) सम्पूर्ण सृष्टि के उत्पन्नकर्त्ता (अग्निश्रियः) अग्नि से धनयुक्त (स्वानिनः) अतिशय शब्दों से विशिष्ट (रुद्रियाः) अग्नि में उत्पन्न होनेवाले (वर्षनिर्णिजः) सृष्टि के पवित्र करने वा पुष्ट करनेवाले (मरुतः) वायुदल (सिंहाः) व्याघ्रों के (न) सदृश शब्द करते जिनको (हेषक्रतवः) शब्दरूप बुद्धि वा क्रियावाले (सुदानवः) उत्तम दानकारक हम लोग (आ, ईमहे) अच्छे प्रकार याचना करते हैं (ते) वे सब प्रकार माँगने योग्य हैं, उनसे हम लोग (उग्रम्) कठिन (त्वेषम्) प्रकाश और कठिन (अवः) रक्षण आदि की याचना करते हैं ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि विद्वान् लोगों के सङ्ग से बुद्धिमान् होकर वायु आदि की सम्बन्धिनी पदार्थविद्या की प्रार्थना करें और सिंह के समान पराक्रम को धारण करें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्वाय्वादिना किं साध्यमित्याह।

Anvay:

हे मनुष्या यथा वयं ये विश्वकृष्टयोऽग्निश्रियः स्वानिनो मरुत रुद्रिया वर्षनिर्णिजो सिंहा न शब्दायन्ते यान् हेषक्रतवः सुदानवो वयमेमहे ते समन्ताद्याचनीयास्तेभ्यो वयमुग्रं त्वेषमुग्रमव ईमहे ॥५॥

Word-Meaning: - (अग्निश्रियः) अग्निना श्रीः शोभा धनं येषां ते (मरुतः) वायवः (विश्वकृष्टयः) विश्वा कृष्टिर्येभ्यस्ते (आ) (त्वेषम्) प्रकाशम् (उग्रम्) कठिनम् (अवः) रक्षणादिकम् (ईमहे) याचामहे (वयम्) (ते) (स्वानिनः) बहवः स्वानाः शब्दा विद्यन्ते येभ्यस्ते (रुद्रियाः) रुद्रेऽग्नौ भवाः (वर्षनिर्णिजः) वर्षस्य वृष्टेः शोधकाः पोषका वा (सिंहाः) व्याघ्राः (न) इव (हेषक्रतवः) हेषाः शब्दाः क्रतवः प्रज्ञाः क्रिया वा येषान्ते (सुदानवः) सुष्ठुदानं येभ्यस्ते ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । मनुष्यैर्विद्वत्सङ्गेन धीमद्भिर्भूत्वा वाय्वादिपदार्थविद्या याचनीया सिंह इव पराक्रमश्च धरणीयः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी विद्वान लोकांच्या संगतीने बुद्धिमान बनून वायू इत्यादी संबंधी पदार्थविद्या शिकावी व सिंहाप्रमाणे पराक्रम गाजवावा. ॥ ५ ॥