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अग्ने॑ अ॒पां समि॑ध्यसे दुरो॒णे नित्यः॑ सूनो सहसो जातवेदः। स॒धस्था॑नि म॒हय॑मान ऊ॒ती॥

English Transliteration

agne apāṁ sam idhyase duroṇe nityaḥ sūno sahaso jātavedaḥ | sadhasthāni mahayamāna ūtī ||

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Pad Path

अग्ने॑। अ॒पाम्। सम्। इ॒ध्य॒से॒। दु॒रो॒णे। नित्यः॑। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। स॒धऽस्था॑नि। म॒हय॑मानः। ऊ॒ती॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:25» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्वानों को परमात्मा के तुल्य जगत् को आनन्दित करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (सहसः) बलवान् के (सूनो) पुत्र के तुल्य वर्त्तमान वा अविद्या के नाशकारक (जातवेदः) सम्पूर्ण उत्पन्न पदार्थों के ज्ञाता (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी (नित्यः) अपने स्वरूप से नाशरहित (महयमानः) पूजने अर्थात् आदर करने योग्य ! जो आप (ऊती) रक्षण आदि क्रिया से (अपाम्) प्राणों के मध्य में सूर्य के सदृश (दुरोणे) रहने के स्थान गृह में (सम्) (इध्यसे) प्रकाशित होते उन आपको चाहिये कि सम्पूर्ण मनुष्यों के (सधस्थानि) तुल्य स्थानों और आत्माओं को विद्या धर्म्म विनय से प्रकाशित करें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभावयुक्त और सच्चित् आनन्द आदि लक्षण विशिष्ट परमात्मा सम्पूर्ण जगत् को उत्पन्न और रक्षित कर आनन्दित करता है, वैसे ही सत्यवक्ता विद्वान् पुरुषों को चाहिये कि सम्पूर्ण इस संसार को आनन्दयुक्त करें ॥५॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पच्चीसवाँ सूक्त और पच्चीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्वद्भिः परमात्मवज्जगदानन्दनीयमित्याह।

Anvay:

हे सहसस्सूनो जातवेदोऽग्ने नित्यो महयमानो यस्त्वमूती अपां मध्ये सूर्य्य इव दुरोणे समिध्यसे तेन भवता सर्वेषां मनुष्याणां सधस्थान्यात्मानश्च विद्याधर्मविनयैः प्रकाशनीयाः ॥५॥

Word-Meaning: - (अग्ने) वह्निरिव वर्त्तमान (अपाम्) प्राणानां मध्ये (सम्) (इध्यसे) प्रकाश्यसे (दुरोणे) निवासस्थाने गृहे (नित्यः) स्वस्वरूपेणाऽविनाशी (सूनो) अपत्यमिव वर्त्तमान अविद्याहिंसक वा (सहसः) बलवतः (जातवेदः) जातप्रज्ञान (सधस्थानि) समानस्थानानि (मह्यमानः) पूज्यमानः (ऊती) ऊत्या रक्षणाद्यया क्रियया ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभावः सच्चिदानन्दादिलक्षणः परमात्मा सर्वं जगदुत्पाद्य संरक्ष्यानन्दयति तथैवाप्तैर्विद्वद्भिस्सर्वमिदं जगदानन्दयितव्यमिति ॥५॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चविंशतितमं सूक्तं स एव वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा शुद्ध, बुद्ध, मुक्त स्वभावयुक्त व सच्चिदानंद इत्यादी लक्षणविशिष्ट परमात्मा संपूर्ण जगाला उत्पन्न करून व रक्षण करून आनंदित करतो, तसेच सत्यवक्ते असणाऱ्या विद्वान पुरुषांनी संपूर्ण जगाला आनंदित करावे. ॥ ५ ॥