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अ॒ग्निर्द्यावा॑पृथि॒वी वि॒श्वज॑न्ये॒ आ भा॑ति दे॒वी अ॒मृते॒ अमू॑रः। क्षय॒न्वाजैः॑ पुरुश्च॒न्द्रो नमो॑भिः॥

English Transliteration

agnir dyāvāpṛthivī viśvajanye ā bhāti devī amṛte amūraḥ | kṣayan vājaiḥ puruścandro namobhiḥ ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। वि॒श्वज॑न्ये॒ इति॑ वि॒श्वऽज॑न्ये। आ। भा॒ति॒। दे॒वी इति॑। अ॒मृते॒ इति॑। अमू॑रः। क्षय॑न्। वाजैः॑। पु॒रु॒ऽच॒न्द्रः। नमः॑ऽभिः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:25» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् जन ! जैसे (पुरुश्चन्द्रः) बहुत आनन्दकारक (वाजैः) विज्ञान वेग आदिकों से (नमोभिः) अन्न वा सत्कारों के साथ (क्षयन्) निवास करनेवाला (अग्निः) सूर्य्य वा विद्युत् रूप अग्नि (विश्वजन्ये) सबके उत्पादक (देवी) उत्तम गुण कर्म स्वभावयुक्त (अमृते) कारणरूप से नाशरहित (द्यावापृथिवी) प्रकाश और भूमि को (आ) सब ओर से (भाति) प्रकाशित करता है वैसे (अमूरः) मूढ़ता आदि दोषों से रहित होकर सम्पूर्ण सज्जनों को अपनी विद्या और विनय से सब प्रकार प्रकाशित करो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग पृथिवी के सदृश क्षमाशील, सूर्य्य के सदृश सत्य असत्य के प्रकाशकर्ता, मूढ़ लोगों को उपदेशदाता और सब लोगों को धार्मिक करते हैं, उन लोगों का ही सत्कार करना चाहिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वन्यथा पुरुश्चन्द्रो वाजैर्नमोभिः सह क्षयन्नग्निर्विश्वजन्ये देवी अमृते द्यावापृथिवी आभाति तथाऽमूरः सन् सर्वान् सज्जनान्स्वविद्याविनयाभ्यां सर्वतः प्रकाशय ॥३॥

Word-Meaning: - (अग्निः) सूर्य्यो विद्युद्वा (द्यावापृथिवी) प्रकाशभूमी (विश्वजन्ये) सर्वस्य जनयित्र्यौ (आ) समन्तात् (भाति) प्रकाशयति (देवी) दिव्यगुणकर्मस्वभावयुक्ते (अमृते) कारणरूपेण नाशरहिते (अमूरः) मूढत्वादिदोषरहितः (क्षयन्) निवासयन् (वाजैः) विज्ञानवेगादिभिः (पुरुश्चन्द्रः) पुरुर्बहुश्चन्द्र आह्लादो यस्य सः (नमोभिः) अन्नैः सह सत्कारैर्वा ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पृथिवीवत् क्षमान्विताः सूर्यवत्सत्याऽसत्यप्रकाशका मूढान् बोधयन्तः सर्वान्मनुष्यान्धार्मिकान्कुर्वन्ति त एव सत्कर्तव्या भवन्ति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक पृथ्वीप्रमाणे क्षमाशील, सूर्याप्रमाणे सत्य-असत्याचा प्रकाश करणारे, मूढ लोकांना उपदेश करणारे असून सर्व लोकांना धार्मिक करतात, त्याच लोकांचा सत्कार केला पाहिजे. ॥ ३ ॥