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दश॒ क्षिपः॑ पू॒र्व्यं सी॑मजीजन॒न्त्सुजा॑तं मा॒तृषु॑ प्रि॒यम्। अ॒ग्निं स्तु॑हि दैववा॒तं दे॑वश्रवो॒ यो जना॑ना॒मस॑द्व॒शी॥

English Transliteration

daśa kṣipaḥ pūrvyaṁ sīm ajījanan sujātam mātṛṣu priyam | agniṁ stuhi daivavātaṁ devaśravo yo janānām asad vaśī ||

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Pad Path

दश॑। क्षिपः॑। पू॒र्व्यम्। सी॒म्। अ॒जी॒ज॒न॒न्। सुऽजा॑तम्। मा॒तृषु॑। प्रि॒यम्। अ॒ग्निम्। स्तु॒हि॒। दै॒व॒ऽवा॒तम्। दे॒व॒ऽश्र॒वः॒। यः। जना॑नाम्। अस॑त्। व॒शी॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:23» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:23» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (देवश्रवः) विद्वानों के लिये उपकार श्रोता ! आप जैसे (दश) दश संख्यायुक्त (क्षिपः) फैलनेवाली अङ्गुलियाँ (मातृषु) नदियों में (प्रियम्) कामना करने योग्य (सुजातम्) उत्तम प्रकार सिद्ध (दैववातम्) विद्वानों से जाने हुओं का सम्बन्धी (पूर्व्यम्) प्राचीन जनों से उत्पन्न (अग्निम्) अग्नि को (सीम्) सब प्रकार (अजीजनन्) उत्पन्न करते हैं वैसे आप (स्तुहि) स्तुति करो और (यः) जो (जनानाम्) मनुष्यों के मध्य में (वशी) इन्द्रियजित् (असत्) होवे उसकी प्रशंसा करो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे हाथों की अङ्गुलियों से बहुत कार्य्यं सिद्ध होते हैं, वैसे ही अग्नि आदिकों से बहुत कार्यों को आप लोग सिद्ध करो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे देवश्रवो भवान् यथा दश क्षिपो मातृषु प्रियं सुजातं दैववातं पूर्व्यमग्निं सीमजीजनन् तथा त्वं स्तुहि। यो जनानां वश्यसत्तंश्च प्रशंस ॥३॥

Word-Meaning: - (दश) दशसङ्ख्याकाः (क्षिपः) प्रक्षेपिका अङ्गुलयः (पूर्व्यम्) पूर्वैर्निष्पादितम् (सीम्) सर्वतः (अजीजनन्) जनयन्ति (सुजातम्) सुष्ठुप्रसिद्धम् (मातृषु) नदीषु। मातर इति नदीनाम। निघं० १। १२। (प्रियम्) कमनीयम् (अग्निम्) पावकम् (स्तुहि) प्रशंस (दैववातम्) देवैर्विज्ञातानां सम्बन्धिनम् (देवश्रवः) यो देवेभ्यो विद्वद्भ्यः शृणोति तत्सम्बुद्धौ (यः) (जनानाम्) मनुष्याणाम् (असत्) भवेत् (वशी) जितेन्द्रियः ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा कराङ्गुलिभिर्बहूनि कार्य्याणि सिध्यन्ति तथैवाग्न्यादिभिर्बहूनि कार्य्याणि यूयं साध्नुत ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे हाताच्या बोटांनी पुष्कळ कार्य सिद्ध होते, तसेच अग्नी इत्यादींनी तुम्ही पुष्कळ कार्य सिद्ध करा. ॥ ३ ॥