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इ॒ध्मेना॑ग्न इ॒च्छमा॑नो घृ॒तेन॑ जु॒होमि॑ ह॒व्यं तर॑से॒ बला॑य। याव॒दीशे॒ ब्रह्म॑णा॒ वन्द॑मान इ॒मां धियं॑ शत॒सेया॑य दे॒वीम्॥

English Transliteration

idhmenāgna icchamāno ghṛtena juhomi havyaṁ tarase balāya | yāvad īśe brahmaṇā vandamāna imāṁ dhiyaṁ śataseyāya devīm ||

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Pad Path

इ॒ध्मेन॑। अ॒ग्ने॒। इ॒च्छमा॑नः। घृ॒तेन॑। जु॒होमि॑। ह॒व्यम्। तर॑से। बला॑य। याव॑त्। ईशे॑। ब्रह्म॑णा। वन्द॑मानः। इ॒माम्। धिय॑म्। श॒त॒ऽसेया॑य। दे॒वीम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:18» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:18» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रकाशित विद्यायुक्त ! जैसे (इध्मेन) समिध से तथा (घृतेन) उत्तम प्रकार के मन्त्रों से संस्कारयुक्त घृत से (इच्छमानः) इच्छाकारी मैं (तरसे) वेग तथा (बलाय) बल के लिये (हव्यम्) हवनसामग्री का (जुहोमि) होम करता हूँ (ब्रह्मणा) अतिशय धन के साथ (वन्दमानः) स्तुति से उपासनाकारक मैं (शतसेयाय) शत आदि संख्या से पूरित धनप्राप्ति के लिये (इमाम्) विद्यमान इस (देवीम्) प्रकाशमान (धियम्) धारणायोग्य बुद्धि की (यावत्) जितने परिमाण से (ईशे) इच्छाकारक हूँ, उसी प्रकार आप हवन कीजिये, उतनी इच्छा करो ॥३॥
Connotation: - जैसे इन्धन और घृत से अग्नि बढ़ती है, वैसे ही ब्रह्मचर्य्य तथा वेद के अभ्यास से बल और विद्या बढ़ती है। जितना वेद से ब्रह्मचर्य्य रखना योग्य है, उतना अभ्यास करना चाहिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने ! यथेध्मेन घृतेनेच्छमानोऽहं तरसे बलाय हव्यं जुहोमि ब्रह्मणा वन्दमानः शतसेयायेमां देवीं धियं यावदीशे तथा त्वं जुहुधि तावदीशिष्व ॥३॥

Word-Meaning: - (इध्मेन) समिधेन (अग्ने) अग्निरिव प्रदीप्तविद्य (इच्छमानः) (घृतेन) सुसंस्कृतेनाज्येन (जुहोमि) (हव्यम्) (तरसे) तारकाय (बलाय) (यावत्) (ईशे) इच्छामि (ब्रह्मणा) महता धनेन सह (वन्दमानः) (इमाम्) वर्त्तमानाम् (धियम्) धारणावतीं प्रज्ञाम् (शतसेयाय) शतादिसंख्यापरिमितधनावसानाय (देवीम्) देदीप्यमानां विद्वद्भिः कमनीयाम् ॥३॥
Connotation: - यथेन्धनघृताभ्यामग्निर्वर्द्धते तथैव ब्रह्मचर्य्यवेदाभ्यासाभ्यां बलविद्ये वर्द्धेते यावद्योग्यं तावदेव ब्रह्मचर्य्यं सेवनीयम् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - इंधन व घृत यांनी जसा अग्नी वाढतो, तसेच ब्रह्मचर्य व वेदाच्या अभ्यासाने बल व विद्या वाढते. जितके ब्रह्मचर्य वेदामुळे पाळले जाईल तितका अभ्यास केला पाहिजे. ॥ ३ ॥