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प्र पी॑पय वृषभ॒ जिन्व॒ वाजा॒नग्ने॒ त्वं रोद॑सी नः सु॒दोघे॑। दे॒वेभि॑र्देव सु॒रुचा॑ रुचा॒नो मा नो॒ मर्त॑स्य दुर्म॒तिः परि॑ ष्ठात्॥

English Transliteration

pra pīpaya vṛṣabha jinva vājān agne tvaṁ rodasī naḥ sudoghe | devebhir deva surucā rucāno mā no martasya durmatiḥ pari ṣṭhāt ||

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Pad Path

प्र। पी॒प॒य॒। वृ॒ष॒भ॒। जिन्व॑। वाजा॑न्। अग्ने॑। त्वम्। रोद॑सी॒ इति॑। नः॒। सु॒दोघे॒ इति॑ सु॒ऽदोघे॑। दे॒वेभिः॑। दे॒व॒। सु॒ऽरुचा॑। रु॒चा॒नः। मा। नः॒। मर्त॑स्य। दुः॒ऽम॒तिः। परि॑। स्था॒त्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:15» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वृषभ) शरीर और आत्मा के बल से युक्त (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी ! (त्वम्) आप जैसे (सुदोघे) कामनाओं की उत्तम प्रकार पूर्त्तिकारक (रोदसी) अन्तरिक्ष पृथिवी को सूर्य्य प्रकाशित और सुखयुक्त करता है वैसे (वाजान्) विज्ञानयुक्त (नः) हम लोगों को (पीपय) संपत्तियुक्त कीजिये। हे (देव) उत्तम गुणप्रदाता ! आप (देवेभिः) विद्वानों के साथ (सुरुचा) उत्तम तेज से प्रीतिसहित (रुचानः) प्रीतियुक्त हुए (नः) हम लोगों को (प्र) (जिन्व) आनन्दित कीजिये जिससे कि हम लोगों के लिये (मर्त्तस्य) मनुष्यसम्बन्धिनी (दुर्मतिः) दुष्ट बुद्धि (मा) नहीं (परि) सब ओर से (स्थात्) स्थित हो ॥६॥
Connotation: - जिस देश में विद्वान् लोग प्रीति से सबलोगों को बढ़ाने की इच्छा करते हैं और दुष्ट बुद्धि का नाश करते हैं, वहाँ सबलोग वृद्धि को प्राप्त विज्ञानरूप धनवाले होते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे वृषभाऽग्ने ! त्वं सुदोघे रोदसी सूर्य्य इव वाजान्नोऽस्मभ्यं पीपय। हे देव त्वं देवेभिः सुरुचा सह रुचानः सन्नोऽस्मान् प्र जिन्व यतो नो मर्त्तस्य दुर्मतिर्मा परिष्ठात् ॥६॥

Word-Meaning: - (प्र) (पीपय) वर्द्धय (वृषभ) शरीरात्मबलयुक्त (जिन्व) प्रीणीहि (वाजान्) विज्ञानवतः (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (त्वम्) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (नः) अस्मभ्यम् (सुदोघे) कामानां सुष्ठुप्रपूरिके। अत्र वर्णव्यत्ययेन हस्य घः। (देवेभिः) विद्वद्भिः सह (देव) दिव्यगुणप्रद (सुरुचा) यया सुष्ठु रोचते तया (रुचानः) प्रीतिमान् (मा) (नः) अस्मान् (मर्त्तस्य) मनुष्यस्य (दुर्मतिः) दुष्टा चासौ मतिश्च (परि) सर्वतः (स्थात्) तिष्ठेत् ॥६॥
Connotation: - यस्मिन्देशे विद्वांसः प्रीत्या सर्वान् वर्धयितुमिच्छन्ति दुष्टां प्रज्ञां विनाशयन्ति तत्र सर्वे प्रवृद्धविज्ञानधना जायन्ते ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या देशात विद्वान लोक प्रेमाने सर्व लोकांना पुढे जाण्याची प्रेरणा देतात व दुष्ट बुद्धीचा नाश करतात तेथे ते प्रबुद्ध विज्ञानरूपी धन प्राप्त करतात. ॥ ६ ॥