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त्वं नृ॒चक्षा॑ वृष॒भानु॑ पू॒र्वीः कृ॒ष्णास्व॑ग्ने अरु॒षो वि भा॑हि। वसो॒ नेषि॑ च॒ पर्षि॒ चात्यंहः॑ कृ॒धी नो॑ रा॒य उ॒शिजो॑ यविष्ठ॥

English Transliteration

tvaṁ nṛcakṣā vṛṣabhānu pūrvīḥ kṛṣṇāsv agne aruṣo vi bhāhi | vaso neṣi ca parṣi cāty aṁhaḥ kṛdhī no rāya uśijo yaviṣṭha ||

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Pad Path

त्वम्। नृ॒ऽचक्षाः॑। वृ॒ष॒भ॒। अनु॑। पू॒र्वीः। कृ॒ष्णासु॑। अ॒ग्ने॒। अ॒रु॒षः। वि। भा॒हि॒। वसो॒ इति॑। नेषि॑। च॒। पर्षि॑। च॒। अति॑। अंहः॑। कृ॒धि। नः॒। रा॒ये। उ॒शिजः॑। य॒वि॒ष्ठ॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:15» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ) अत्यन्त युवा (वृषभ) वीरतायुक्त (अग्ने) अग्नि के सदृश विद्या से प्रकाशमान ! (त्वम्) आप सूर्य्य के सदृश (अरुषः) रक्षक और (नृचक्षाः) मनुष्यों के सत् असत् कर्म में विवेकी होकर (कृष्णासु) अविद्यान्धकारयुक्त नीच प्रजाओं में (अनु) (पूर्वीः) प्रथम ईश्वर से प्रकट की गई प्रजाओं को (वि) (भाहि) प्रकाशमान कीजिये। हे (वसो) उत्तम गुणधारी ! जिससे आप (राये) धन के लिये (उशिजः) कामनाविशिष्ट पुरुषों के योग्य (नेषि) प्राप्त कराते (च) मनोरथों को पूर्ण (च) और (पर्षि) दुःखों से रहित तथा (अंहः) बुरे आचरण को (अति) दूर कीजिये, इससे आप (नः) हम लोगों को श्रेष्ठ (कृधि) कीजिये ॥३॥
Connotation: - हे विद्वान् पुरुषो ! आप लोगों को चाहिये कि जैसे सूर्य्य अपने किरणों के द्वारा सब जनों का पालन करता है, वैसे विद्या और उत्तम शिक्षा से संपूर्ण प्रजा को विद्या धन से युक्त तथा पाप से निवृत्त करके पुण्य कर्मों में प्रीतिपूर्वक प्रवृत्त करावें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह।

Anvay:

हे यविष्ठ वृषभाऽग्ने त्वं सूर्य्य इवारुषो नृचक्षाः सन् कृष्णास्वनुपूर्वीः प्रजा वि भाहि। हे वसो यतस्त्वं राय उशिजो नेषि च मनोरथान् पर्षि चांहोऽति नेषि तस्मात्त्वं नोऽस्मानुत्तमान् कृधि ॥३॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (नृचक्षाः) नृणां सदसत्कर्मद्रष्टा (वृषभ) प्राप्तशरीरात्मबल (अनु) (पूर्वीः) पूर्वेणेश्वरेण कृताः (कृष्णासु) निकृष्टवर्णास्वाकर्षितासु प्रजासु (अग्ने) पावक इव विद्याप्रकाशयुक्त (अरुषः) अहिंसकः सन् (वि) (भाहि) प्रकाशय (वसो) सद्गुणेषु कृतनिवास (नेषि) नयसि (च) (पर्षि) पालयसि। अत्रोभयत्र विकरणाभावः। (च) (अति) (अंहः) अनिष्टाचरणम् (कृधि) कुरु। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (राये) धनाय (उशिजः) कामयमानान् (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् ॥३॥
Connotation: - हे विद्वांसो युष्माभी रविरिव विद्यासुशिक्षाभ्यां सर्वाः प्रजा विद्याधनाढ्याः कृत्वा पापान्निवार्य्य पुण्ये प्रवर्त्तयितव्याः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वान पुरुषांनो! जसा सूर्य आपल्या किरणांद्वारे सर्व लोकांचे पालन करतो तसे विद्या व सुशिक्षणाने संपूर्ण प्रजेला विद्याधनांनी युक्त करून पापापासून निवृत्त करून पुण्यकर्मात प्रवृत्त करावे. ॥ ३ ॥