Go To Mantra

दी॒दि॒वांस॒मपू॑र्व्यं॒ वस्वी॑भिरस्य धी॒तिभिः॑। ऋक्वा॑णो अ॒ग्निमि॑न्धते॒ होता॑रं वि॒श्पतिं॑ वि॒शाम्॥

English Transliteration

dīdivāṁsam apūrvyaṁ vasvībhir asya dhītibhiḥ | ṛkvāṇo agnim indhate hotāraṁ viśpatiṁ viśām ||

Mantra Audio
Pad Path

दी॒दि॒ऽवांस॑म्। अपू॑र्व्यम्। वस्वी॑भिः। अ॒स्य॒। धी॒तिऽभिः॑। ऋक्वा॑णः। अ॒ग्निम्। इ॒न्ध॒ते॒। होता॑रम्। वि॒श्पति॑म्। वि॒शाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:13» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:5


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो पुरुष (ऋक्वाणः) स्तुति करने योग्य गुणों के स्तुतिकर्त्ता (धीतिभिः) अङ्गुलियों के सदृश (वस्वीभिः) धन प्राप्त करानेवाली क्रियाओं से (अस्य) इस संसार के मध्य में (अग्निम्) अग्नि के तुल्य वर्त्तमान (दीदिवांसम्) उत्तम गुणों के प्रकाश से युक्त (अपूर्व्यम्) अपूर्व श्रेष्ठ गुणों में निपुण (होतारम्) सुखदायक (विशाम्) प्रजाओं के बीच (विश्पतिम्) विशिष्टों के पालनकर्त्ता जन को (इन्धते) प्रकाशित करता है, उसकी आप लोग सेवा करें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! आप लोगों को इस संसार में श्रेष्ठ पुरुषों का आश्रय करना, दुष्टों का सङ्ग त्यागना, विद्या धन की वृद्धि करनी और विद्या विनय से युक्त राजा का सेवन करना योग्य है, ऐसा समझो ॥५॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह।

Anvay:

हे मनुष्या य ऋक्वाणो धीतिभिरिव वस्वीभिरस्य संसारस्य मध्य अग्निमिव दीदिवांसमपूर्व्यं होतारं विशां विश्पतिमिन्धते तं यूयं सदा सेवध्वम् ॥५॥

Word-Meaning: - (दीदिवांसम्) सद्गुणैर्देदीप्यमानम् (अपूर्व्यम्) अपूर्वेषु दिव्येषु गुणेषु कुशलम् (वस्वीभिः) धनप्रापिकाभिः क्रियाभिः (अस्य) (धीतिभिः) अङ्गुलीभिरिव (ऋक्वाणः) स्तुत्यानां गुणानां स्तावकाः (अग्निम्) अग्निमिव वर्त्तमानम् (इन्धते) प्रकाशयन्ति (होतारम्) सुखस्य दातारम् (विश्पतिम्) विशिष्टानां पालकम् (विशाम्) प्रजानाम् ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या युष्माभिरत्र श्रेष्ठाश्रयः कर्त्तव्यो दुष्टसङ्गो हातव्यो विद्याधनवृद्धिः कर्त्तव्या विद्याविनयसहितो राजा सेवनीयोऽस्तीति विजानीत ॥५॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! तुम्ही या जगात श्रेष्ठ पुरुषांचा आश्रय घेणे, दुष्टांचा संग त्यागणे, विद्या-धनाची वृद्धी करणे व विद्या विनययुक्त राजाचे सेवन करणे योग्य आहे, हे जाणा. ॥ ५ ॥