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सा॒ह्वान्विश्वा॑ अभि॒युजः॒ क्रतु॑र्दे॒वाना॒ममृ॑क्तः। अ॒ग्निस्तु॒विश्र॑वस्तमः॥

English Transliteration

sāhvān viśvā abhiyujaḥ kratur devānām amṛktaḥ | agnis tuviśravastamaḥ ||

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Pad Path

सा॒ह्वान्। विश्वाः॑। अ॒भि॒ऽयुजः॑। क्रतुः॑। दे॒वाना॑म्। अमृ॑क्तः। अ॒ग्निः। तु॒विश्र॑वःऽतमः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:11» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (अमृक्तः) जो कि औरों से न मारा जा सके (साह्वान्) क्रोधरहित (क्रतुः) बुद्धिमान् और (अग्निः) अग्नि के सदृश शुद्धस्वभाव वाला (तुविश्रवस्तमः) अतिशय कर बहुत शास्त्रों को जिसने सुना हो (देवानाम्) पण्डितों के बीच में (विश्वाः) संपूर्ण (अभियुजः) अपने अनुकूल व्यवहार करनेवाली प्रजाओं की सब प्रकार रक्षा करता है, वही सब प्रजाजनों से सत्कार पाने योग्य है ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो किसी को नहीं मारता उसको मारने की कोई इच्छा नहीं करता, जो पुरुष बहुत शास्त्रों को पढ़ने और सुनने की इच्छा करता है, वह अति बुद्धिमान् होता है, जो जैसी भावना से प्रजा में वर्त्ताव रखता है, उसके साथ प्रजा भी उसी भावना से वर्त्ताव रखती है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या योऽमृक्तः साह्वान् क्रतुरग्निरिव शुद्धस्तुविश्रवस्तमो देवानां विश्वा अभियुजः प्रजाः सर्वतो रक्षति सएव सर्वैः प्रजाजनैः सत्कर्त्तव्यः ॥६॥

Word-Meaning: - (साह्वान्) षोढा। अत्र दाश्वान्साह्वान्मीढ्वाँश्चेति निपातनात् सिद्धिः। (विश्वाः) अखिलाः (अभियुजः) या आभिमुख्येन युज्यन्ते ताः प्रजाः (क्रतुः) प्राज्ञः (देवानाम्) विदुषां मध्ये (अमृक्तः) अन्यैरहिंस्यः (अग्निः) पावकइव शुद्धस्वरूपः (तुविश्रवस्तमः) अतिशयेन बहुश्रुतः ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यः कञ्चन न हिनस्ति तं कोऽपि हिंसितुं नेच्छति यो बहूनि शास्त्राण्यध्येतुं वा श्रोतुमिच्छति स प्राज्ञतमो जायते यो यादृशेन भावेन प्रजायां वर्त्तते तं प्रति प्रजाअपि तादृशेन भावेनाभियुङ्क्ते ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो कुणाला मारीत नाही त्याला मारण्याची इच्छा कोणी करीत नाही. जो पुरुष पुष्कळ शास्त्रांचे अध्ययन व श्रवण करण्याची इच्छा करतो तो अत्यंत बुद्धिमान असतो. जो ज्या भावनेने प्रजेशी वागतो त्याच्या बरोबर प्रजाही त्याच भावनेने वागते. ॥ ६ ॥