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अ॒ग्निर्धि॒या स चे॑तति के॒तुर्य॒ज्ञस्य॑ पू॒र्व्यः। अर्थं॒ ह्य॑स्य त॒रणि॑॥

English Transliteration

agnir dhiyā sa cetati ketur yajñasya pūrvyaḥ | arthaṁ hy asya taraṇi ||

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Pad Path

अ॒ग्निः। धि॒या। सः। चे॒त॒ति॒। के॒तुः। य॒ज्ञस्य॑। पू॒र्व्यः। अर्थ॑म्। हि। अ॒स्य॒। त॒रणि॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:11» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को किनका सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो विद्वान् पुरुष (अग्निः) अग्नि के सदृश तेजस्वी (केतुः) उपदेश द्वारा बुद्धि का प्रकाश करने तथा (तरणि) सद्विद्या से दुःख का छुड़ानेवाला (पूर्व्यः) प्राचीन विद्वानों में चतुर (धिया) कर्म से वा बुद्धि से (हि) जिस कारण से (अस्य) इस (यज्ञस्य) विद्वानों के सत्काररूप व्यवहार को (अर्थम्) प्रयोजन को (चेतति) उत्तम प्रकार जानता वा अन्यों को जनाता है, इससे (सः) वह सेवा करने योग्य है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो पुरुष विद्यारूप यज्ञ को उत्तम प्रकार से जानते हैं, उन्हीं पुरुषों की विद्या की उन्नति होने के लिये सेवा करो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः के सेवनीया इत्याह।

Anvay:

यो विद्वानग्निरिव केतुस्तरणि पूर्व्यो धिया ह्यस्य यज्ञस्यार्थं चेतति तस्मात्स सेव्योऽस्ति ॥३॥

Word-Meaning: - (अग्निः) पावकइव (धिया) क्रियया प्रज्ञया वा (सः) (चेतति) संजानीते संज्ञापयति वा (केतुः) प्रज्ञापकः (यज्ञस्य) विद्वत्सत्कारादेर्व्यवहारस्य (पूर्व्यः) पूर्वेषु विद्वत्सु कुशलः (अर्थम्) प्रयोजनम् (हि) यतः (अस्य) (तरणि) सन्तारकः। अत्र सुपां सुलुगिति सुलुक् ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ये विद्यामयं यज्ञं यथावज्जानन्ति तानेव विद्यावृद्धये सेवध्वम् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जे पुरुष विद्यारूपी यज्ञ चांगल्या प्रकारे जाणतात, त्याच पुरुषांची विद्या उन्नत होण्यासाठी सेवा करा. ॥ ३ ॥