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मयो॑ दधे॒ मेधि॑रः पू॒तद॑क्षो दि॒वः सु॒बन्धु॑र्ज॒नुषा॑ पृथि॒व्याः। अवि॑न्दन्नु दर्श॒तम॒प्स्व१॒॑न्तर्दे॒वासो॑ अ॒ग्निम॒पसि॒ स्वसॄ॑णाम्॥

English Transliteration

mayo dadhe medhiraḥ pūtadakṣo divaḥ subandhur januṣā pṛthivyāḥ | avindann u darśatam apsv antar devāso agnim apasi svasṝṇām ||

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Pad Path

मयः॑। द॒धे॒। मेधि॑रः। पू॒तऽद॑क्षः। दि॒वः। सु॒ऽबन्धुः॑। ज॒नुषा॑। पृ॒थि॒व्याः। अवि॑न्दन्। ऊँ॒ इति॑। द॒र्श॒तम्। अ॒प्ऽसु। अ॒न्तः। दे॒वासः॑। अ॒ग्निम्। अ॒पसि॑। स्वसॄ॑णाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:1» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:13» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे सज्जन ! जैसे (देवासः) विद्वान् जन (अप्सु) जल वा प्राणों के (अन्तः) बीच (दर्शतम्) देखने योग्य (अग्निम्) विद्युतरूप अग्नि को (अपसि) कर्म के निमित्त (अविन्दन्) प्राप्त होते हैं वैसे जो (दिवः) सूर्य और (पृथिव्याः) भूमि के बीच (जनुषा) जन्म से (स्वसॄणाम्) भगिनियों का (सुबन्धुः) सुन्दर भ्राता (पूतदक्षः) जिसका पवित्रबल वह (मेधिरः) सज्जनों का सङ्ग करनेवाला होता हुआ (मयः) सुख को (दधे) धारण करता है वह (उ) ही जलों वा प्राणों में सब सुख को प्राप्त होता है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विद्वान् जन योगविद्या से अपने आत्माओं में ज्ञान का प्रकाश देख औरों को दिखला कर ज्ञान से उन्हें बढ़ाते हैं, वैसे मनुष्यों को जिस प्रकार पुत्रों को विद्या पढ़ाना चाहिये, वैसे ही पुत्रियाँ भी विद्यासम्पन्न करनी चाहियें। जैसे भाई जन विद्याभ्यास करें, वैसे भगिनी भी, ऐसे ही अत्यानन्द मिल सकता है ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे सज्जन ! यथा देवासोऽप्स्वन्तर्दर्शतमग्निमपस्यविन्दंस्तथा यो दिवः पृथिव्याअन्तर्जनुषा स्वसॄणां सुबन्धुः पूतदक्षो मेधिरः सन् मयो दधे स उ अप्सु सर्वं सुखमाप्नोति ॥३॥

Word-Meaning: - (मयः) सुखम् (दधे) दधाति (मेधिरः) संगमकः (पूतदक्षः) पवित्रं दक्षो बलं यस्य सः (दिवः) प्रकाशयुक्तस्य (सुबन्धुः) शोभनो भ्राता (जनुषा) जन्मना (पृथिव्याः) भूमेर्मध्ये (अविन्दन्) लभन्ते (उ) (दर्शतम्) द्रष्टव्यम् (अप्सु) जलेषु प्राणेषु वा (अन्तः) मध्ये (देवासः) विद्वांसः (अग्निम्) विद्युतम् (अपसि) कर्मणि (स्वसॄणाम्) भगिनीनाम् ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्वांसो योगविद्यया स्वात्मसु ज्ञानप्रकाशं दृष्ट्वाऽन्यान्दर्शयित्वा ज्ञानेन वर्द्धयन्ति तथा मनुष्यैर्यथा पुत्रा अध्यापनीयास्तथा पुत्र्योऽपि यथा बन्धवो विद्याऽभ्यासं कुर्युस्तथा भगिन्योऽपीत्थमेव भद्रं प्राप्तुं शक्यम् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान योगविद्येद्वारे आत्मज्ञान प्रकाशाने इतरांची उन्नती करतात तसे माणसांनी पुत्रांना व कन्यांनाही विद्यासंपन्न केले पाहिजे. जसे बंधू विद्याभ्यास करतात तसाच भगिनींनीही करावा. या प्रकारे आनंद प्राप्त होऊ शकतो. ॥ ३ ॥