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सोम॑स्य मा त॒वसं॒ वक्ष्य॑ग्ने॒ वह्निं॑ चकर्थ वि॒दथे॒ यज॑ध्यै। दे॒वाँ अच्छा॒ दीद्य॑द्यु॒ञ्जे अद्रिं॑ शमा॒ये अ॑ग्ने त॒न्वं॑ जुषस्व॥

English Transliteration

somasya mā tavasaṁ vakṣy agne vahniṁ cakartha vidathe yajadhyai | devām̐ acchā dīdyad yuñje adriṁ śamāye agne tanvaṁ juṣasva ||

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Pad Path

सोम॑स्य। मा॒। त॒वसम्। वक्षि॑। अ॒ग्ने॒। वह्नि॑म्। च॒क॒र्थ॒। वि॒दथे॑। यज॑ध्यै। दे॒वान्। अच्छ॑। दीद्य॑त्। यु॒ञ्जे। अद्रि॑म्। श॒म्ऽआ॒ये। अ॒ग्ने॒। त॒न्व॑म्। जु॒ष॒स्व॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:1» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तीसरे मण्डल का प्रारम्भ है। उसके प्रथम सूक्त के आरम्भ के प्रथम मन्त्र में विद्वानों की प्रशंसा को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वान् ! जो आप (सोमस्य) ऐश्वर्य की उत्तेजना से (तवसम्) बलयुक्त (मा) मुझको (वह्निम्) पदार्थ बहानेवाले अर्थात् एक देश से दूसरे देश ले जानेवाले अग्नि को (वक्षि) कहते हैं (विदथे) विद्वानों के सत्कार करनेवाले यज्ञ में (देवान्) विद्वान् वा दिव्य गुणों के (यजध्यै) संगत करने को (अच्छ) अच्छे प्रकार (चकर्थ) क्रिया करते हो उनके साथ मैं (दीद्यत्) देदीप्यमान हुआ विद्वानों के सत्कार करनेवाले यज्ञ में विद्वान् वा दिव्य गुणों के संगत करने को (युञ्जे) युक्त होता हूँ जैसे अग्नि (अद्रिम्) मेघ को बहाता है वैसे मैं विद्वानों के समीप में (शमाये) शान्ति के समान आचरण करता हूँ, हे (अग्ने) अग्निवद्वर्त्तमान ! शिष्य जैसे विद्वान् के शरीर का सेवन करता है वैसे आप (तन्वम्) शरीर की (जुषस्व) प्रीति करो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य ऐश्वर्य के करने की इच्छा करें, वे विद्वानों की संगति से शरीर को नीरोग रखकर अपने को विद्वान् बना के अग्नि आदि की पदार्थविद्या से कार्य्यों को सिद्ध करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्गुणानाह।

Anvay:

हे अग्ने ! यस्त्वं सोमस्य तवसं मा वह्निं वक्षि विदथे देवान् यजध्यै अच्छ चकर्थ तेन सहाहं दीद्यत्सन् विदथे देवान् यजध्यै युञ्जे यथाऽग्निरद्रिं वहति तथाऽहं विदुषां समीपे शमाये। हे अग्ने ! शिष्यो यथा विद्वच्छरीरं सेवते तथा च तन्वं जुषस्व॥१॥

Word-Meaning: - (सोमस्य) ऐश्वर्यस्य सकाशात् (मा) माम् (तवसम्) बलयुक्तम् (वक्षि) वदसि (अग्ने) विद्वन् (वह्निम्) वाहकं पावकम् (चकर्थ) करोषि (विदथे) विद्वत्सत्काराख्ये यज्ञे (यजध्यै) यष्टुं संगन्तुं (देवान्) विदुषो दिव्यगुणान् वा (अच्छ) सम्यक्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (दीद्यत्) देदीप्यमानः (युञ्जे) (अद्रिम्) मेघम् (शमाये) शममिवाचरामि (अग्ने) अग्निवद्वर्त्तमान (तन्वम्) (जुषस्व) ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या ऐश्वर्य्यं चिकीर्षेयुस्ते विद्वत्संगत्या शरीरमरोगं संरक्ष्यात्मानं विद्वांसं सम्पाद्याग्न्यादिपदार्थविद्यया कार्य्याणि साधयेयुः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान, स्त्री-पुरुष व विद्या, जन्माची प्रशंसा असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्तार्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणावे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या माणसांना ऐश्वर्याची इच्छा असेल त्यांनी विद्वानांच्या संगतीने शरीर निरोगी ठेवून स्वतःला विद्वान बनवावे व अग्नी इत्यादीच्या पदार्थ विद्येने कार्य सिद्ध करावे. ॥ १ ॥