Go To Mantra

अ॒ग्नेरिन्द्र॑स्य॒ सोम॑स्य दे॒वाना॑मू॒तिभि॑र्व॒यम्। अरि॑ष्यन्तः सचेमह्य॒भि ष्या॑म पृतन्य॒तः॥

English Transliteration

agner indrasya somasya devānām ūtibhir vayam | ariṣyantaḥ sacemahy abhi ṣyāma pṛtanyataḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒ग्नेः। इन्द्र॑स्य। सोम॑स्य। दे॒वाना॑म्। ऊ॒तिऽभिः॑। व॒यम्। अरि॑ष्यन्तः। स॒चे॒म॒हि॒। अ॒भि। स्या॒म॒। पृ॒त॒न्य॒तः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:8» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:29» Mantra:6 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (अग्नेः) अग्नि (इन्द्रस्य) सूर्य (सोमस्य) चन्द्रमा और (देवानाम्) विद्वान् और पृथिवी आदि लोकों की (ऊतिभिः) रक्षा आदि व्यवहारों के साथ वर्त्तमान (अरिष्यन्तः) न नष्ट होते और (पृतन्यतः) अपने को सेना की इच्छा करते हुए (वयम्) हम लोग (सचेमहि) सङ्ग करें और मित्रपन के लिये (अभिष्याम) सब ओर से प्रसिद्ध होवें वैसे तुम भी होओ ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विद्वान् जन अग्न्यादि विद्या से रक्षित सबके मित्र प्रशंसित सेनावाले होकर मित्र होते हुए धर्म और विद्या की उन्नति करें, वैसे सब मनुष्य प्रयत्न करें ॥६॥इस सूक्त में अग्नि और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति समझनी चाहिये ॥ यह दूसरे अष्टक में उनतीशवाँ वर्ग और आठवाँ सूक्त समाप्त हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यथाऽग्नेरिन्द्रस्य सोमस्य देवानामूतिभिर्वर्त्तमाना अरिष्यन्तः पृतन्यतो वयं सचेमहि सख्यायाभिस्याम तथा यूयमपि भवत ॥६॥

Word-Meaning: - (अग्नेः) पावकस्य (इन्द्रस्य) सूर्यस्य (सोमस्य) चन्द्रस्य (देवानाम्) विदुषां पृथिव्यादिलोकानां वा (ऊतिभिः) रक्षणादिभिः सह वर्त्तमानाः (वयम्) (अरिष्यन्तः) अहिंस्यमानाः (सचेमहि) सङ्गता भवेम (अभि) (स्याम) (पृतन्यतः) आत्मनः पृतनामिच्छन्तः ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्वांसोऽग्न्यादिविद्यया रक्षिताः सर्वस्य सुहृदः प्रशस्तसेनावन्तो भूत्वा सखायस्सन्तो धर्मविद्योन्नतिं कुर्युस्तथा सर्वे मनुष्याः प्रयतन्तामिति ॥६॥अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति द्वितीयाऽष्टके एकोनत्रिंशो वर्गो द्वितीयमण्डले प्रथमानुवाकेऽष्टमं सूक्तञ्च समाप्तम् ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक अग्निविद्येने रक्षित, सर्वांचे सुहृद, प्रशंसित सेनेने युक्त असून, मित्र बनून धर्म व विद्येची उन्नती करतात, तसा सर्व माणसांनी प्रयत्न करावा. ॥ ६ ॥