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शुचिः॑ पावक॒ वन्द्योऽग्ने॑ बृ॒हद्वि रो॑चसे। त्वं घृ॒तेभि॒राहु॑तः॥

English Transliteration

śuciḥ pāvaka vandyo gne bṛhad vi rocase | tvaṁ ghṛtebhir āhutaḥ ||

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Pad Path

शुचिः॑। पा॒व॒क॒। वन्द्यः॑। अग्ने॑। बृ॒हत्। वि। रो॒च॒से॒। त्वम्। घृ॒तेभिः॑। आऽहु॑तः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:7» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:28» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (पावक) पवित्र करनेवाले (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान ! (घृतेभिः) घी आदि पदार्थों से अग्नि के समान (शुचिः) पवित्र (वन्द्यः) स्तुति के योग्य (आहुतः) आमन्त्रित (त्वम्) आप (बृहत्) बहुत (विरोचसे) प्रकाशमान होते हैं, सो सत्कार करने योग्य हैं ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे घी आदि पदार्थों से प्रज्वलित किया हुआ पवित्र करनेवाला अग्नि बहुत प्रकाशित होता है, वैसे सत्कार पाया हुआ विद्वान् जन बहुत उपकार करता है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे पावकाऽग्ने घृतेभिः प्रदीप्तोऽग्निरिव शुचिर्वन्द्य आहुतस्त्वं बृहद्विरोचसे स सत्कर्त्तव्योऽसि ॥४॥

Word-Meaning: - (शुचिः) पवित्रः (पावकः) पवित्रकर्त्तः (वन्द्यः) स्तोतुमर्हः (अग्ने) अग्निवत्प्रकाशमान विद्वन् (बृहत्) महत् (वि) विशेषे (रोचसे) प्रकाशसे (त्वम्) (घृतेभिः) आज्यादिभिः (आहुतः) आमन्त्रितः ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा घृतादिभिः प्रज्वालितः पवित्रकर्त्ताऽग्निर्बहु रोचते तथा सत्कृतो विद्वान् बहु उपकारं करोति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा घृत इत्यादी पदार्थांनी प्रज्वलित केलेला अग्नी अत्यंत प्रकाशमान असतो, तसे सत्कारित विद्वान अत्यंत उपकारक असतो. ॥ ४ ॥