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मा नो॒ अरा॑तिरीशत दे॒वस्य॒ मर्त्य॑स्य च। पर्षि॒ तस्या॑ उ॒त द्वि॒षः॥

English Transliteration

mā no arātir īśata devasya martyasya ca | parṣi tasyā uta dviṣaḥ ||

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Pad Path

मा। नः॒। अरा॑तिः। ई॒श॒त॒। दे॒वस्य॑। मर्त्य॑स्य। च॒। पर्षि॑। तस्याः॑। उ॒त। द्वि॒षः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:7» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:28» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! (नः) हम (देवस्थ) विद्वान् (मर्त्यस्य, च) और अविद्वान् का (अरातिः) शत्रुः (मा, ईशत) मत समर्थ हो (उत) और हम लोगों को और (तस्याः) उस (द्विषः) अप्रीतिवाले शत्रु के (पर्षि) पार पहुँचाइये ॥२॥
Connotation: - जो द्वेष छोड़ धार्मिक विद्वानों की तथा अविद्वानों के साथ प्रीति उत्पन्न कराते हैं, वे किसी से तिरस्कार को नहीं प्राप्त होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वन्नो देवस्य मर्त्त्यस्य चारातिर्मेशत उतापि तस्या द्विषो नः पर्षि पारं नय ॥२॥

Word-Meaning: - (मा) (नः) अस्मान् (अरातिः) शत्रुः (ईशत) समर्थो भवेत् (देवस्य) विदुषः (मर्त्यस्य) अविदुषः (च) (पर्षि) पिपूरय (तस्याः) (उत) अपि (द्विषः) अप्रीतेः ॥२॥
Connotation: - ये द्वेषं विहाय धार्मिकाणां विदुषामविदुषां च सङ्गेन सर्वेषु प्रीतिं जनयन्ति ते केनापि तिरस्कृता न जायन्ते ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे द्वेष सोडून धार्मिक विद्वानांवर व अविद्वानांवर प्रेम करतात, ते कुणाकडून तिरस्कृत होत नाहीत. ॥ २ ॥