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मा त्वा॑ श्ये॒न उद्व॑धी॒न्मा सु॑प॒र्णो मा त्वा॑ विद॒दिषु॑मान्वी॒रो अस्ता॑। पित्र्या॒मनु॑ प्र॒दिशं॒ कनि॑क्रदत्सुम॒ङ्गलो॑ भद्रवा॒दी व॑दे॒ह॥

English Transliteration

mā tvā śyena ud vadhīn mā suparṇo mā tvā vidad iṣumān vīro astā | pitryām anu pradiśaṁ kanikradat sumaṅgalo bhadravādī vadeha ||

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Pad Path

मा। त्वा॒। श्ये॒नः। उत्। व॒धी॒त्। मा। सु॒ऽप॒र्णः। मा। त्वा॒। वि॒द॒त्। इषु॑ऽमान्। वी॒रः। अस्ता॑। पित्र्या॑म्। अनु॑। प्र॒ऽदिश॑म्। कनि॑क्रदत्। सु॒ऽम॒ङ्गलः॑। भ॒द्र॒ऽवा॒दी। व॒द॒। इ॒ह॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:42» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:11» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! (त्वा) तुझे (श्येनः) श्येन पक्षी के समान कोई (मा, उत् वधीत्) मत उच्चाटे (मा) मत (सुवर्णः) अच्छे पंखवाले अन्य पक्षी के समान उच्चाटे (त्वा) तुझे (इषुमान्) वाणों को रखने वा (अस्ता) फेंकनेवाला (वीरः) वीर (मा, विदत्) मत प्राप्त हो (इह) यहाँ (कनिक्रदत्) निरन्तर कहता हुआ (भद्रवादी) कल्याणरूप उपदेश करनेवाला (सुमङ्गलः) सुन्दर मङ्गल का उपदेशक होता हुआ (पित्र्याम्) पितृसम्बन्धी (प्रदिशम्) दिशा और उपदिशाओं से युक्त देश को (अनु,वद) अनुकूलता से उपदेश कर ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे श्येन पक्षी पखेरू अन्य पक्षियों को मारते हैं, वैसे कोई उपदेशक को पीड़ा मत दे, जिससे वह सुख और कुशलता से सर्वत्र उपदेश कर सके ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वन् त्वा त्वां श्येन इव कश्चिन्मोद्बधीन्मा सुपर्ण इवोद्बधीत्। त्वा इषुमानस्ता वीरो मा विदत् इह कनिक्रदद्भद्रवादी सुमङ्गलः सन् पित्र्याम्प्रदिशमनुवद ॥२॥

Word-Meaning: - (मा) (त्वा) त्वाम् (श्येनः) (उत्) (वधीत्) हन्यात् (मा) (सुपर्णः) अन्यः पक्षी (मा) (त्वा) (विदत्) प्राप्नुयात् (इषुमान्) वाणवान् (वीरः) (अस्ता) प्रक्षेपकः (पित्र्याम्) (अनु) (प्रदिशम्) दिशोपदिग्युक्तं देशम् (कनिक्रदत्) भृशं वदन् (सुमङ्गलः) सुमङ्गलोपदेशकः (भद्रवादी) भद्रं कल्याणं वदितुं शीलं यस्य सः (वद) (इह) अस्मिन्संसारे ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा श्येनादयः पक्षिणोऽन्यान्पक्षिणो घ्नन्ति तथा कश्चिदपि उपदेशकं मा पीडयेद्येनायं सुखेन कुशलतया च सर्वत्रोपदेशकं कर्त्तुं शक्नुयात् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा श्येन पक्षी इतर पक्ष्यांना मारतो तसे कुणीही उपदेशकाला त्रास देता कामा नये. ज्यामुळे तो सुखाने व कौशल्याने सर्वत्र उपदेश करू शकेल. ॥ २ ॥