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इन्द्र॑श्च मृ॒ळ्या॑ति नो॒ न नः॑ प॒श्चाद॒घं न॑शत्। भ॒द्रं भ॑वाति नः पु॒रः॥

English Transliteration

indraś ca mṛḻayāti no na naḥ paścād aghaṁ naśat | bhadram bhavāti naḥ puraḥ ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। च॒। मृ॒ळया॑ति। नः॒। न। नः॒। प॒श्चात्। अ॒घम्। न॒श॒त्। भ॒द्रम्। भ॒वा॒ति॒। नः॒। पु॒रः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:41» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को तथा परमेश्वरोपासना विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (इन्द्रः) परमेश्वर (च) और उसका बनाया सूर्य (नः) हमको (मृळयाति) सुखी करे इससे (नः) हमारे (पुरः) अगले (पश्चात्) और पिछले (अघम्) पाप (न) न (नशत्) प्राप्त हो किन्तु (नः) हमारे लिये यथार्थ (भद्रम्) कल्याण (भवाति) होवे ॥११॥
Connotation: - जो जगदीश्वर घटपटादिकों को जैसे सूर्य वैसे सबके आत्माओं को प्रकाशित करता है, जो उसके भक्त हैं, वे उससे भिन्न की उसके स्थान में नहीं उपासना करते हैं, वे सर्वव्यापक परमेश्वर को जान और वह हमें निरन्तर देखता है ऐसा मानकर अधर्माचरण नहीं करते हैं किन्तु निरन्तर धर्म ही का अनुष्ठान करते हैं, उनके आगामी पापाचरण की निवृत्ति और योगज सिद्धि विज्ञान के होने से मुक्ति होवे ही गी, औरों की नहीं, यह निश्चय है ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तद्विषयं परमेश्वरोपासनाविषयञ्चाह।

Anvay:

यदिन्द्रः परमेश्वरस्तत्कृतः सूर्यश्च नो मृळयात्यतो नः परः पश्चाच्चाऽघं न नशत्। किन्तु नो याथातथ्यं भद्रं भवाति ॥११॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) परमेश्वरः सूर्यो वा (च) (मृळयाति) सुखयेत् (नः) अस्मान् (न) निषेधे (नः) अस्माकम् (पश्चात्) (अघम्) पापम् (नशत्) प्राप्नुयात्। नशदिति व्याप्तिकर्मा। निघं० २। १८। (भद्रम्) कल्याणम् (भवाति) (नः) अस्मभ्यम् (पुरः) पुरस्तात् ॥११॥
Connotation: - यो जगदीश्वरो घटपटादीन् सूर्य इव सर्वात्मनः प्रकाशयति ये तद्भक्तास्ते तस्मादन्यं तत्स्थाने नोपासते सर्वव्यापकं ज्ञात्वाऽस्मानीश्वरः सततं पश्यतीति मत्वाऽधर्माचरणं न कुर्वन्ति सततं धर्ममेवाऽनुतिष्ठन्ति तेषामागामि पापाचरणनिवृत्त्या योगजसिद्धिविज्ञानोद्भवेन मुक्तिः स्यादेवेति नाऽन्येषामिति निश्चयः ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -जसा सूर्य सर्व पदार्थांना प्रकाशित करतो तसा जगदीश्वर सर्वांचे आत्मे प्रकाशित करतो. त्याचे भक्त त्याच्याऐवजी दुसऱ्याची उपासना करीत नाहीत. ते सर्वव्यापक परमेश्वराला जाणतात व तो आपल्याला सतत पाहतो असे मानून अधर्माचरण करीत नाहीत तर सतत धर्माचेच अनुष्ठान करतात. त्यामुळे त्यांच्या पापाचरणाची निवृत्ती व योगसिद्ध विज्ञानाने मुक्ती होते. तशी इतरांची होत नाही हे निश्चित. ॥ ११ ॥