Go To Mantra

इ॒मौ दे॒वौ जाय॑मानौ जुषन्ते॒मौ तमां॑सि गूहता॒मजु॑ष्टा। आ॒भ्यामिन्द्रः॑ प॒क्वमा॒मास्व॒न्तः सो॑मापू॒षभ्यां॑ जनदु॒स्रिया॑सु॥

English Transliteration

imau devau jāyamānau juṣantemau tamāṁsi gūhatām ajuṣṭā | ābhyām indraḥ pakvam āmāsv antaḥ somāpūṣabhyāṁ janad usriyāsu ||

Mantra Audio
Pad Path

इ॒मौ। दे॒वौ। जाय॑मानौ। जु॒ष॒न्त॒। इ॒मौ। तमां॑सि। गू॒ह॒ता॒म्। अजु॑ष्टा। आ॒भ्याम्। इन्द्रः॑। प॒क्वम्। आ॒मासु॑। अ॒न्तरिति॑। सो॒मापू॒षऽभ्या॑म्। ज॒न॒त्। उ॒स्रिया॑सु॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:40» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:2


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अग्नि के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! सब पदार्थ (इमौ) इन प्रत्यक्ष (जायमानौ) उत्पन्न होते हुए (देवी) मनोहरों को (जुषन्त) सेवते हैं जो (इमौ) ये दोनों (अजुष्टा) न सेवन किये हुए (तमांसि) रात्रियों को (गूहताम्) अच्छे प्रकार ढाँपते हैं (आभ्याम्) इन (सोमापूषभ्याम्) चन्द्र और ओषधि गणों के साथ (इन्द्रः) बिजली वा सूर्य (आमासु) अपक्व (उस्रियासु) भूमियों के (अन्तः) बीच (पक्वम्) पके पदार्थ को (जनत्) उत्पन्न कराता उनका अच्छे प्रकार उपयोग करो ॥२॥
Connotation: - जो अग्नि सबके भीतर स्थित प्रकाशकारक है, वह जिन चन्द्रमा और ओषधिगणों के बिना अकिंचित् कर होता अर्थात् संसार का सुख करनेवाला नहीं होता, उनको जान कार्य्यसिद्धि करनी चाहिये ॥२॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ वह्निविषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या सर्वे पदार्था याविमौ जायमानौ देवौ जुषन्त। याविमावजुष्टा तमांसि गूहतामाभ्यां सोमापूषभ्यां सहेन्द्र आमासूस्रियास्वन्तः पक्वं जनत्तौ सम्यगुपयुञ्जत ॥२॥

Word-Meaning: - (इमौ) प्रत्यक्षौ (देवौ) कमनीयौ (जायमानौ) (जुषन्त) (इमौ) वर्त्तमानौ (तमांसि) रात्रीः (गूहताम्) समावृणुतः (अजुष्टा) असेवितौ (आभ्याम्) (इन्द्रः) विद्युत् सूर्य्यो वा (पक्वम्) (आमासु) अपक्वासु (अन्तः) मध्ये (सोमापूषभ्याम्) चन्द्रौषधिगणाभ्याम् (जनत्) जनयति। अत्राडभावो विकरणात्मनेपदव्यत्ययश्च। (उस्रियासु) भूमिषु ॥२॥
Connotation: - योऽग्निः प्रकाशमन्तर्हितं करोति स याभ्यां चन्द्रौषधिगणाभ्यां विना किञ्चित्करौ भवति तौ विज्ञाय कार्य्यसिद्धिः कार्य्या ॥२॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - अग्नी सर्व पदार्थात स्थित असून प्रकाश देणारा आहे. तो या जगात चंद्र व औषधीशिवाय सुखकारक होत नाही. त्यांना जाणून कार्यसिद्धी करावी. ॥ २ ॥