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इ॒मं वि॒धन्तो॑ अ॒पां स॒धस्थे॑ द्वि॒ताद॑धु॒र्भृग॑वो वि॒क्ष्वा॒३॒॑योः। ए॒ष विश्वा॑न्य॒भ्य॑स्तु॒ भूमा॑ दे॒वाना॑म॒ग्निर॑र॒तिर्जी॒राश्वः॑॥

English Transliteration

imaṁ vidhanto apāṁ sadhasthe dvitādadhur bhṛgavo vikṣv āyoḥ | eṣa viśvāny abhy astu bhūmā devānām agnir aratir jīrāśvaḥ ||

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Pad Path

इ॒मम्। वि॒धन्तः॑। अ॒पाम्। स॒धऽस्थे॑। द्वि॒ता। अ॒द॒धुः॒। भृग॑वः। वि॒क्षु। आ॒योः। ए॒षः। विश्वा॑नि। अ॒भि। अ॒स्तु॒। भूम॑। दे॒वाना॑म्। अ॒ग्निः। अ॒र॒तिः। जी॒रऽअ॑श्वः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:4» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (एषः) यह (अरतिः) समर्थ (जीराश्वः) जिनके वेगवान् शीघ्रगामी गुण विद्यमान वह (अग्निः) अग्नि (भूमा) बहुताई से (देवानाम्) दिव्य गुणवाले पृथिवी आदि लोक-लोकान्तरों के (विक्षु) प्रजागणों में (आयोः) प्राप्त व्यवहार को (विश्वानि) समस्त वस्तुओं को सब ओर से व्याप्त होता हुआ विद्यमान है, जिस (इमम्) इस अग्नि को (विधन्तः) सेवते हुए (भृगवः) विद्वान् जन (अपाम्) अन्तरिक्ष के जल वा प्राणों के (सधस्थे) समान स्थान में (अदधुः) धरते स्थापन करते हैं, उसके साथ यहाँ (द्विता) दोनों व्यवहारों का भाव अर्थात् शराग्निभाव और पञ्चाकलाग्निभाव (अभ्यस्तु) सब ओर से हो ॥२॥
Connotation: - जो अग्नि अपनी व्याप्ति से प्रजाजनों में प्रविष्ट है, उससे समस्त वेगवान् यन्त्रकलाओं से प्रचलित किये हुए यान शीघ्र चलनेवाले बनाने चाहिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

य एषोऽरतिर्जीराश्वोऽग्निर्भूमा देवानां विक्ष्वायोर्विश्वान्यभि व्याप्नुवन्नस्ति यमिमं विधन्तो भृगवोऽपां सधस्थेऽदधुस्तेन सहाऽत्र द्विता अभ्यस्तु ॥२॥

Word-Meaning: - (इमम्) (विधन्तः) परिचरन्तः (अपाम्) अन्तरिक्षस्य जलस्य प्राणानां वा (सधस्थे) समानस्थाने (द्विता) द्वयोर्भावः (आदधुः) धरन्ति (भृगवः) विद्वांसः (विक्षु) प्रजासु (आयोः) प्राप्तस्य (एषः) (विश्वानि) (अभि) अभितः (अस्तु) (भूमा) बहुत्वेन (देवानाम्) दिव्यगुणानां पृथिव्यादीनाम् (अग्निः) वह्निः (अरतिः) समर्थः (जीराश्वः) जीरा वेगवन्तोऽश्वा आशुगामिनो गुणा यस्य तम् ॥२॥
Connotation: - योऽग्निः स्वव्याप्त्या प्रजासु प्रविष्टस्तेन सर्वाणि वेगवन्ति यन्त्रकलाप्रचलितानि यानानि शीघ्रगामीनि विधेयानि ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या अग्नीची लोकलोकान्तरी व्याप्ती आहे, त्याद्वारे अत्यंत वेगवान यंत्रकलेने प्रचलित केलेली तात्काळ चालणारी अशी याने निर्माण केली पाहिजेत. ॥ २ ॥