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ए॒तानि॑ वामश्विना॒ वर्ध॑नानि॒ ब्रह्म॒ स्तोमं॑ गृत्सम॒दासो॑ अक्रन्। तानि॑ नरा जुजुषा॒णोप॑ यातं बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

English Transliteration

etāni vām aśvinā vardhanāni brahma stomaṁ gṛtsamadāso akran | tāni narā jujuṣāṇopa yātam bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

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Pad Path

ए॒तानि॑। वा॒म्। अ॒श्वि॒ना॒। वर्ध॑नानि। ब्रह्म॑। स्तोम॑म्। गृ॒त्स॒ऽम॒दासः॑। अ॒क्र॒न्। तानि॑। न॒रा॒। जु॒जु॒षा॒णा। उप॑। या॒त॒म्। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:39» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) सकल विद्या में व्याप्त होनेवाले (नरा) मनुष्यों में अग्रगन्ताओं के समान वर्त्तमान अध्यापक और परीक्षको ! तुम (वाम्) तुम दोनों के जिन (एतानि) इन (वर्द्धनानि) वृद्धियों (ब्रह्म) धन और (स्तोमम्) प्रशंसा को (गृत्समदासः) जिन्होंने आनन्द चाहे हुए हैं, वे जन (अक्रन्) करें (तानि) उनको (जुजुषाणा) सेवते हुए हम लोगों के (उप,यातम्) समीप प्राप्त होते जिससे (सुवीराः) उत्तम वीरोंवाले हम सब लोग (विदथे) संग्राम में (बृहत्) बहुत विज्ञान को निरन्तर (वदेम) पढ़ावें वा उपदेश करें ॥८॥
Connotation: - जो मनुष्य विद्वानों का अनुकरण करें तो वे महात्मा होवें ॥८॥ इस सूक्त में वायु और अग्नि आदि पदार्थ वा विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह उनतालीसवाँ सूक्त और पाचवाँ वर्ग पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे अश्विना नरेव वर्त्तमानावध्यापकपरीक्षकौ युवां वां यान्येतानि वर्द्धनानि ब्रह्म स्तोमं च गृत्समदासोऽक्रन् तानि जुजुषाणा सन्तावास्मानुपयातं यतस्सुवीराः सन्तो वयं विदथे बृहत्सततं वदेम ॥८॥

Word-Meaning: - (एतानि) (वाम्) युवयोः (अश्विना) सकलविद्याव्यापिनौ (वर्द्धनानि) (ब्रह्म) धनम् (स्तोमम्) प्रशंसाम् (गृत्समदासः) गृत्सा अभिकाङ्क्षिता मदा हर्षा यैस्ते (अक्रन्) कुर्य्युः (तानि) (नरा) नेतारौ (जुजुषाणा) सेवमानौ (उप) (यातम्) उपाप्नुतः (बृहत्) महद्विज्ञानम् (वदेम) अध्यापयेम उपदिशेम वा (विदथे) विज्ञानमये यज्ञे (सुवीराः) शोभनाश्च ते वीरा व्याप्तविद्यास्ते ॥८॥
Connotation: - ये मनुष्या विद्वदनुकरणं कुर्य्युस्तर्हि ते महान्तो भवेयुरिति ॥८॥ । अत्र वाय्वग्न्यादिविदुषाञ्च गुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या॥ इत्येकोनचत्वारिंशत्तमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे विद्वानांचे अनुकरण करतात ती महान बनतात. ॥ ८ ॥