Go To Mantra

आ॒शुभि॑श्चि॒द्यान्वि मु॑चाति नू॒नमरी॑रम॒दत॑मानं चि॒देतोः॑। अ॒ह्यर्षू॑णां चि॒न्न्य॑याँ अवि॒ष्यामनु॑ व्र॒तं स॑वि॒तुर्मोक्यागा॑त्॥

English Transliteration

āśubhiś cid yān vi mucāti nūnam arīramad atamānaṁ cid etoḥ | ahyarṣūṇāṁ cin ny ayām̐ aviṣyām anu vrataṁ savitur moky āgāt ||

Mantra Audio
Pad Path

आशुऽभिः॑। चि॒त्। यान्। वि। मु॒चा॒ति॒। नू॒नम्। अरी॑रमत्। अत॑मानम्। चि॒त्। एतोः॑। अ॒ह्यर्षू॑णाम्। चि॒त्। नि। अ॒या॒न्। अ॒वि॒ष्याम्। अनु॑। व्र॒तम्। स॒वि॒तुः। मोकी॑। आ। अ॒गा॒त्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:38» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (मोकी) रात्रि (आशुभिः) घोड़ों के समान शीघ्रकारी पदार्थों से (यान्) जिन (अयान्) प्राप्त वस्तुओं को (वि,मुचाति) छोड़े (एतोः) इसको (अतमानम्) निरन्तर प्राप्त (चित्) भी पदार्थ (नूनम्) निश्चय करके (अरीरमत्) रमण करता है (अह्यर्षूणाम्) और जो मेघ को प्राप्त होते हैं उन पदार्थों की (चित्) भी (अविष्याम्) रक्षा को (सवितुः) जगदीश्वर का जैसे (अनुव्रतम्) अनुकूल वा नियम वैसे (नि,आ,अगात्) प्राप्त होता है यह उक्त समस्त काम (चित्) भी जगदीश्वर के नियम से होता है ॥३॥
Connotation: - यदि ईश्वर नियम से पृथिवी को न घुमावे तो सुख देनेवाली रात्रि न सिद्ध हो, पृथिवी में जितना देश सूर्य के निकट होता है, उसमें दिन और दूसरे में रात्रि, ये दोनों निरन्तर वर्त्तमान हैं ॥३॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

या मोक्याशुभिर्यान् यान् वि मुचात्येतोरतमानं चिन्नूनमरीरमदह्यर्षूणां चिदविष्यां सवितुरनुव्रतं न्यागात्। एतच्चिदीश्वरनियमाद्भवति ॥३॥

Word-Meaning: - (आशुभिः) अश्वैरिव क्षिप्रकारिभिः (चित्) अपि (यान्) (वि) (मुचाति) मुच्यात्। अत्र लेटि छान्दसो वर्णलोप इति न लोपः। (नूनम्) निश्चितम् (अरीरमत्) रमयति (अतमानम्) अततं सततं प्राप्तम्। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (चित्) अपि (एतोः) एताम् (अह्यर्षूणाम्) येऽहिं मेघं प्राप्नुवन्ति तेषाम् (चित्) (नि) (अयान्) प्राप्तान् (अविष्याम्) रक्षाम्। अत्राऽवधातोरौणादिकः स्यः प्रत्ययः। (अनु) (व्रतम्) शीलं नियमं वा (सवितुः) जगदीश्वरस्य (मोकी) रात्रिः। मोकीति रात्रिना०। निघं० १। ७। (आ) (अगात्) प्राप्नोति ॥३॥
Connotation: - यदीश्वरो नियमेन पृथिवीं न भ्रामयेत्तर्हि सुखप्रदा रात्रिर्न निर्वर्त्तेत। पृथिव्यां यावान्देशः सूर्य्यसन्निधौ भवति तत्र दिनमपरस्मिन् रात्रिश्च सततं वर्त्तेते ॥३॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जर ईश्वरी नियमानुसार पृथ्वीचे परिवलन झाले नसते तर सुखकारक रात्र निर्माण झाली नसती. पृथ्वीवर जितका भाग सूर्यासमोर येतो तेथे दिवस व दुसऱ्या भागात रात्र होते. हे दोन्ही निरन्तर वर्तमान असतात. ॥ ३ ॥