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भगं॒ धियं॑ वा॒जय॑न्तः॒ पुर॑न्धिं॒ नरा॒शंसो॒ ग्नास्पति॑र्नो अव्याः। आ॒ये वा॒मस्य॑ संग॒थे र॑यी॒णां प्रि॒या दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स्या॑म॥

English Transliteration

bhagaṁ dhiyaṁ vājayantaḥ puraṁdhiṁ narāśaṁso gnāspatir no avyāḥ | āye vāmasya saṁgathe rayīṇām priyā devasya savituḥ syāma ||

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Pad Path

भग॑म्। धिय॑म्। वा॒जय॑न्तः। पुर॑म्ऽधिम्। नरा॒शंसः॑। ग्नाःपतिः॑। नः॒। अ॒व्याः॒। आ॒ऽअ॒ये। वा॒मस्य॑। स॒म्ऽग॒थे। र॒यी॒णाम्। प्रि॒याः। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। स्या॒म॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:38» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:3» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (नराशंसः) मनुष्यों ने प्रशंसित किया हुआ (पतिः) पालना करनेवाला ईश्वर (नः) हम लोगों (ग्नाः) और वाणियों की (अव्याः) रक्षा करे और उस (भगम्) समस्त ऐश्वर्य की (धियम्) जो चिन्तन करने योग्य है वा (पुरन्धिम्) समस्त जगत् के धारण करनेवाले को (वाजयन्तः) जानते वा उसका विज्ञान कराते हुए हम लोग (रयीणाम्) धनों के (आये) इस व्यवहार में जो सब ओर से प्राप्त होता और (सङ्गथे) संग्राम में (वामस्य) प्रशंसनीय (सवितुः) सकल जगत् के बनानेवाले (देवस्य) भगवान् परमात्मा के (प्रियाः) प्रीति विषय निरन्तर (स्याम) हों ॥१०॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! सबकी रक्षा और धारण करनेवाले प्रशंसित सबके स्वामी परमेश्वर की उपासना कर उसकी आज्ञा के आचरण से उसके प्यारे तुम होओ ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यो नराशंसः पतिरीश्वरो नो ग्नाश्चाव्यास्तं भगं धियं पुरन्धिं वाजयन्तो वयं रयीणामाये सङ्गथे वामस्य सवितुर्देवस्य परमात्मनः प्रियाः सततं स्याम ॥१०॥

Word-Meaning: - (भगम्) सकलैश्वर्य्यम् (धियम्) चिन्तनीयम् (वाजयन्तः) जानन्तो ज्ञापयन्तः (पुरन्धिम्) सर्वस्य जगतो धर्त्तारम् (नराशंसः) नरैः प्रशंसितः (ग्नाः) वाचः (पतिः) पालकः (नः) अस्मान् (अव्याः) रक्षेत् (आये) यत्समन्तादय्यते तस्मिन् (वामस्य) प्रशस्यस्य (सङ्गथे) सङ्ग्रामे (रयीणाम्) धनानाम् (प्रियाः) प्रीतिविषयाः (देवस्य) भगवतः परमात्मनः (सवितुः) सर्वस्य जगतो निर्मातुः (स्याम) भवेम ॥१०॥
Connotation: - हे मनुष्याः सर्वस्य रक्षकं धर्त्तारं प्रशंसितं सर्वस्य स्वामिनं परमेश्वरमुपास्य तदाज्ञाचरणेन तत्प्रिया यूयं भवत ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! सर्वांचे रक्षण व धारण करणारा, प्रशंसित, सर्वांचा स्वामी असलेल्या परमेश्वराची उपासना करून त्याच्या आज्ञेप्रमाणे आचरण करून तुम्ही त्याचे प्रिय बना. ॥ १० ॥