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जोष्य॑ग्ने स॒मिधं॒ जोष्याहु॑तिं॒ जोषि॒ ब्रह्म॒ जन्यं॒ जोषि॑ सुष्टु॒तिम्। विश्वे॑भि॒र्विश्वाँ॑ ऋ॒तुना॑ वसो म॒ह उ॒शन्दे॒वाँ उ॑श॒तः पा॑यया ह॒विः॥

English Transliteration

joṣy agne samidhaṁ joṣy āhutiṁ joṣi brahma janyaṁ joṣi suṣṭutim | viśvebhir viśvām̐ ṛtunā vaso maha uśan devām̐ uśataḥ pāyayā haviḥ ||

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Pad Path

जोषि॑। अ॒ग्ने॒। स॒म्ऽइध॑म्। जोषि॑। आऽहु॑तिम्। जोषि॑। ब्रह्म॑। जन्य॑म्। जोषि॑। सु॒ऽस्तु॒तिम्। विश्वे॑भिः। विश्वा॑न्। ऋ॒तुना॑। व॒सो॒ इति॑। म॒हः। उ॒शन्। दे॒वान्। उ॒श॒तः। पा॒य॒य॒। ह॒विः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:37» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:1» Mantra:6 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वान् (वसो) निवास करानेवाले अग्नि के समान आप जिस कारण (समिधम्) प्रदीप्त करनेवाली क्रिया को (जोषि) सेवते (आहुतिम्) वेदी में डाली हुई वस्तु (जोषि) सेवते (ब्रह्म) अन्न और (विश्वान्) सब पदार्थों का (जोषि) सेवन करते (जन्यम्) उत्पन्न करने योग्य पदार्थ वा (सुष्टुतिम्) सुन्दर प्रशंसा को (जोषि) सेवते इस कारण (विश्वेभिः) सब (तुना) वसन्त आदि तुसमूह के साथ (महः) बड़े-बड़े (उशतः) कामना करनेवाले (देवान्) विद्वानों की (उशन्) कामना करते हुए आप उनको (हविः) देने योग्य वस्तु (पायय) पियाओ ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे बिजली रूप अग्नि काष्ठ आदि पदार्थों का सेवन करके भी नहीं जलाता, वैसे ही सबके साथ बसकर उनका नाश न करना चाहिये, ऐसे होने पर काम सिद्धि होती है ॥६॥ इस सूक्त में विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सैंतीसवाँ सूक्त और प्रथम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने वसोऽग्निरिव त्वं यतो समिधं जोष्याहुतिं जोषि ब्रह्म विश्वान् जोषि जन्यं सुष्टुतिं च जोषि तस्माद्विश्वेभिरृतुना च सह उशतो देवानुशंस्त्वमेतान् हविः पायय ॥६॥

Word-Meaning: - (जोषि) जुषसे सेवसे। अत्र बहुलं छन्दसीति शविकरणस्य लुक् व्यत्ययेन परस्मैपदं च (अग्ने) विद्वन् (समिधम्) प्रदीपिकाम् (जोषि) (आहुतिम्) वेद्यां प्रक्षिप्ताम् (जोषि) (ब्रह्म) अन्नम् (जन्यम्) जनितुं योग्यम् (जोषि) (सुष्टुतिम्) शोभनां प्रशंसाम् (विश्वेभिः) सर्वैः (विश्वान्) सर्वान् (तुना) वसन्ताद्येन (वसो) वासयितः (महः) महतः (उशन्) कामयमानः (देवान्) विदुषः (उशतः) कामयमानान् (पायय) अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (हविः) दातव्यं वस्तु ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्युदग्निः काष्ठादीन् पदार्थान् सेवित्वाऽपि न दहति तथैव सर्वैः सह वसित्वैतेषां नाशो न कर्त्तव्य एवं सति कामसिद्धिर्जायत इति ॥६॥ अत्र विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्बोध्या ॥ इति सप्तत्रिंशत्तमं सूक्तमेको वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा विद्युतरूपी अग्नी काष्ठ इत्यादी पदार्थात असूनही त्यांना जाळत नाही, तसेच सर्वांबरोबर राहून त्यांचा नाश करता कामा नये. असे वागल्यास कार्य सिद्ध होते. ॥ ६ ॥