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अ॒र्वाञ्च॑म॒द्य य॒य्यं॑ नृ॒वाह॑णं॒ रथं॑ युञ्जाथामि॒ह वां॑ वि॒मोच॑नम्। पृ॒ङ्क्तं ह॒वींषि॒ मधु॒ना हि कं॑ ग॒तमथा॒ सोमं॑ पिबतं वाजिनीवसू॥

English Transliteration

arvāñcam adya yayyaṁ nṛvāhaṇaṁ rathaṁ yuñjāthām iha vāṁ vimocanam | pṛṅktaṁ havīṁṣi madhunā hi kaṁ gatam athā somam pibataṁ vājinīvasū ||

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Pad Path

अ॒र्वाञ्च॑म्। अ॒द्य। य॒य्य॑म्। नृ॒ऽवाह॑नम्। रथ॑म्। यु॒ञ्जा॒था॒म्। इ॒ह। वा॒म्। वि॒ऽमोच॑नम्। पृ॒ङ्क्तम्। ह॒वींषि। म॒धु॒ना। आ। हि। क॒म्। ग॒तम्। अथ॑। सोम॑म्। पि॒ब॒त॒म्। वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:37» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:1» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वाजिनीवसू) वेगवती क्रिया को वसानेवाले शिल्पी जनो ! तुम (अद्य) आज (यय्यम्) जो अच्छे प्रकार पहुँचता हुआ (अर्वाञ्चम्) नीचे-नीचे चलनेवाला (नृवाहणम्) और मनुष्यों को पहुँचाता है उस (रथम्) रमणीय मनोहर यान को (युञ्जाथाम्) जोड़ो और (इह) इस यान में (मधुना) मधुर गुण के साथ वर्त्तमान जो (हवींषि) देने-लेने योग्य वस्तु हैं उनको (पृङ्क्तम्) संयुक्त कराओ (हि) और निश्चय से (कम्) किस देश को (गतम्) प्राप्त होओ (सोमम्) तथा ओषध्यादि रस को (पिबतम्) पिओ (अथ) इसके अनन्तर (वाम्) तुम दोनों का (विमोचनम्) विशेषता से छूटना हो ॥५॥
Connotation: - जो शिल्प विद्या के पढ़ाने और पढ़नेवाले काष्ठादिकों से निर्माण किये यानों को अग्नि और जलादि से चला और देशान्तर में जाकर धन को अच्छे प्रकार उन्नत करते हैं, वे निरन्तर सुख पाते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे वाजिनीवसू शिल्पिनौ युवामद्य यय्यमर्वाञ्चं नृवाहणं रथं युञ्जाथामिह मधुना सह वर्त्तमानानि हवींषि पृङ्क्तं हि कं गतं सोमं पिबतमथ वां विमोचनमस्तु ॥५॥

Word-Meaning: - (अर्वाञ्चम्) अर्वाग् गामिनम् (अद्य) (यय्यम्) ययिं यातारम्। अत्र आदॄगमहनेति किः प्रत्ययः। अमिपूर्व इत्यत्र वाच्छन्दसीत्यनुवर्त्तनात्पूर्वसवर्णाभावपक्षे यणादेशः। (नृवाहणम्) यो नॄन् वहति तम् (रथम्) (युञ्जाथाम्) (इह) अस्मिन् याने (वाम्) युवयोः (विमोचनम्) (पृङ्क्तम्) संयोजयतम् (हवींषि) दातुमादातुं योग्यानि वस्तूनि (मधुना) मधुरेण गुणेन सह (हि) किल (किम्) देशम् (गतम्) प्राप्नुतम् (अथ) आनन्तर्ये। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सोमम्) (पिबतम्) (वाजिनीवसू) यौ वाजिनीं वेगवतीं क्रियां वासयतस्तौ ॥५॥
Connotation: - यौ शिल्पविद्याऽध्यापकाऽध्येतारावग्निजलादिभिः काष्ठादिभिर्निर्मितानि यानानि चालयित्वा देशान्तरं गत्वा धनमुन्नयन्ति ते सततं सुखं प्राप्नुवन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे शिल्पविद्या शिकविणारे अध्यापक व शिकणारे विद्यार्थी हे कष्टांनी निर्माण केलेली याने इत्यादींना अग्नी व जल यांनी चालवून देशान्तरी जाऊन चांगल्या प्रकारे धन प्राप्त करून उन्नती करतात ते निरन्तर सुख भोगतात. ॥ ५ ॥