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द्यावो॒ न स्तृभि॑श्चितयन्त खा॒दिनो॒ व्य१॒॑भ्रिया॒ न द्यु॑तयन्त वृ॒ष्टयः॑। रु॒द्रो यद्वो॑ मरुतो रुक्मवक्षसो॒ वृषाज॑नि॒ पृश्न्याः॑ शु॒क्र ऊध॑नि॥

English Transliteration

dyāvo na stṛbhiś citayanta khādino vy abhriyā na dyutayanta vṛṣṭayaḥ | rudro yad vo maruto rukmavakṣaso vṛṣājani pṛśnyāḥ śukra ūdhani ||

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Pad Path

द्यावः॑। न। स्तृऽभिः॑। चि॒त॒य॒न्त॒। खा॒दिनः॑। वि। अ॒भ्रियाः॑। न। द्यु॒त॒य॒न्त॒। वृ॒ष्टयः॑। रु॒द्रः। यत्। वः॒। म॒रु॒तः॒। रु॒क्म॒ऽव॒क्ष॒सः॒। वृषा॑। अज॑नि। पृश्न्याः॑। शु॒क्रे। ऊध॑नि॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:34» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:19» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (रुक्मवक्षसः) दीप्ति और अभिप्रीति युक्त हृदयवाले (मरुतः) विद्वान् मनुष्यो (वः) तुम लोगों के लिये (यत्) जो (वृषा) सुख को सींचने और (रुद्रः) दुष्टों को रुलानेवाला मनुष्य (पृश्न्याः) अन्तरिक्ष के बीच (शुक्रे) वीर्य करनेवाली (ऊधनि) रात्रिमें (अजनि) उत्पन्न करे, वा (खादिनः) भक्षण करनेवाले आप लोग (स्तृभिः) नक्षत्रों से (द्यावा) प्रकाशों के (न) समान (चितयन्त) व्यवहारों को पवित्र करें और (अभ्रियाः) बद्दलों में (वृष्टयः) वर्षाओं के (न) समान (विद्युतयन्त) विशेषता से प्रकाशित करे, वह और आप माननीय हों ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो नक्षत्रों के साथ सूर्य्य के समान बद्दलों के साथ बिजली के समान विद्या व्यवहाररूपी प्रकाश में रमते हैं, वे सोने के लिये रात्रि के समान सबके सुख के लिये होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे रुक्मवक्षसो मरुतो वो यद्यो वृषा रुद्रः पृश्न्याः शुक्र ऊधन्यजनि खादिनो भवन्तः स्तृभिर्द्यावो न चितयन्ताऽभ्रिया वृष्टयो न विद्युतयन्त स भवन्तश्च माननीयाः स्युः ॥२॥

Word-Meaning: - (द्यावः) प्रकाशाः (न) इव (स्तृभिः) नक्षत्रैः। स्तृभिरिति नक्षत्रना० निरु० ३। २०। (चितयन्त) चित्तं कुर्वन्तु (खादिनः) भक्षकाः (वि) (अभ्रियाः) अभ्राणि (न) इव (द्युतयन्त) द्युतयन्तु (वृष्टयः) वर्षाः (रुद्रः) दुष्टानां रोदयिता (यत्) यः (वः) युष्मभ्यम् (मरुतः) मनुष्याः (रुक्मवक्षसः) रुक्मं रोचकं वक्षो हृदयं येषान्ते (वृषा) सुखसेचकः (अजनि) जनयेत् (पृश्न्याः) अन्तरिक्षस्य मध्ये (शुक्रे) वीर्य्यकरे (ऊधनि) रात्रौ। ऊध इति रात्रिना० निघं० १। ७ ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये नक्षत्रैः सह सूर्य्यवदभ्रैः सह विद्युद्वद्विद्याव्यवहारप्रकाशे रमन्ते ते शयनाय रात्रीव सर्वेषां सुखाय भवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे नक्षत्रांमध्ये सूर्याप्रमाणे, मेघांमध्ये विद्युतप्रमाणे विद्याव्यवहाररूपी प्रकाशात रमतात ते शयनासाठी जशी रात्र असते तसे सर्वांच्या सुखासाठी असतात. ॥ २ ॥