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स्थि॒रेभि॒रङ्गैः॑ पुरु॒रूप॑ उ॒ग्रो ब॒भ्रुः शु॒क्रेभिः॑ पिपिशे॒ हिर॑ण्यैः। ईशा॑नाद॒स्य भुव॑नस्य॒ भूरे॒र्न वा उ॑ योषद्रु॒द्राद॑सु॒र्य॑म्॥

English Transliteration

sthirebhir aṅgaiḥ pururūpa ugro babhruḥ śukrebhiḥ pipiśe hiraṇyaiḥ | īśānād asya bhuvanasya bhūrer na vā u yoṣad rudrād asuryam ||

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Pad Path

स्थि॒रेभिः॑। अङ्गैः॑। पु॒रु॒ऽरूपः॑। उ॒ग्रः। ब॒भ्रुः। शु॒क्रेभिः॑। पि॒पि॒शे॒। हिर॑ण्यैः। ईशा॑नात्। अ॒स्य। भुव॑नस्य। भूरेः॑। न। वै। ऊँ॒ इति॑। यो॒ष॒त्। रु॒द्रात्। अ॒सु॒र्य॑म्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:33» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:17» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजपुरुष के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे पुरुष (पुरुरूपः) बहुत रूपों से युक्त (उग्रः) क्रूरस्वभावी (बभ्रुः) उत्तम व्यवहारों को धारण करनेवाले आप (स्थिरेभिः) दृढ़ (अङ्गैः) अवयवों से (शुक्रेभिः) शुद्ध वीर्य (हिरण्यैः) और किरणों के समान तेजों से (अस्य) इस (भुवनस्य) सर्वाधिकरण लोक के (भूरेः) बहुरूपिये के (न) जैसे-वैसे शत्रुदल को (पिपिशे) पीसते हुए (उ,वै) वही आप (असुर्यम्) असुर के स्वत्व का (योषत्) वियोग कीजिये ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो तीव्र और मृदु स्वभाववाले हैं, वे जैसे जगदीश्वर के बनाये हुए भूमि आदि पदार्थ दृढ़ और सुन्दर हैं, वैसे बलिष्ठ प्रशंसनीय सेनाङ्गों से दुष्टों को विजय कर असुरभाव का निवारण करें ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजपुरुषविषयमाह।

Anvay:

हे पुरुष पुरुरूप उग्रो बभ्रुर्भवान् स्थिरेभिरङ्गैः शुक्रेभिर्हरण्यैरीशानाद्रुदादस्य भुवनस्य भूरेर्न इव शत्रुदलं पिपिशे स उ वा असुर्य्यं योषत् ॥९॥

Word-Meaning: - (स्थिरेभिः) दृढैः (अङ्गैः) अवयवैः (पुरुरूपः) बहुरूपयुक्तः (उग्रः) क्रूरस्वभावः (बभ्रुः) धर्त्ता (शुक्रेभिः) शुद्धैर्वीर्य्यैः (पिपिशे) पिंश्यात् (हिरण्यैः) किरणैरिव तेजोभिः (ईशानात्) जगदीश्वरात् (अस्य) (भुवनस्य) सर्वाधिकरणस्य लोकस्य (भूरेः) बहुरूपस्य (न) इव (वै) निश्चये (उ) वितर्के (योषत्) वियोजयेः (रुद्रात्) जगदीश्वरात् (असुर्यम्) असुरस्य स्वम् ॥९॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये तीव्रमृदुस्वभावास्ते यथा जगदीश्वरनिर्मितानि भूम्यादीनि वस्तूनि दृढानि सुन्दराणि सन्ति तथा बलिष्ठैः प्रशस्यैः सेनाङ्गैः दुष्टानां विजयं कृत्वाऽसुरभावं निवारयेयुः ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे तीव्र व मृदू स्वभावाचे आहेत. त्यांनी जगदीश्वर निर्मित भूमी इत्यादी पदार्थ जसे दृढ व सुंदर आहेत, तसे बलवान व प्रशंसनीय सेनेद्वारे दुष्टांवर विजय प्राप्त करून राक्षसी वृत्तीचे निवारण करावे. ॥ ९ ॥