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मा नो॒ गुह्या॒ रिप॑ आ॒योरह॑न्दभ॒न्मा न॑ आ॒भ्यो री॑रधो दु॒च्छुना॑भ्यः। मा नो॒ वि यौः॑ स॒ख्या वि॒द्धि तस्य॑ नः सुम्नाय॒ता मन॑सा॒ तत्त्वे॑महे॥

English Transliteration

mā no guhyā ripa āyor ahan dabhan mā na ābhyo rīradho ducchunābhyaḥ | mā no vi yauḥ sakhyā viddhi tasya naḥ sumnāyatā manasā tat tvemahe ||

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Pad Path

मा। नः॒। गुह्याः॑। रिपः॑। आ॒योः। अह॑न्। द॒भ॒न्। मा। नः॒। आ॒भ्यः। री॒र॒धः॒। दु॒च्छुना॑भ्यः। मा। नः॒। वि। यौः॑। स॒ख्या। वि॒द्धि। तस्य॑। नः॒। सु॒म्न॒ऽय॒ता। मन॑सा। तत्। त्वा॒। ई॒म॒हे॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:32» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वानों की मित्रता को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (नः) हमारे (गुह्या) गुप्त एकान्त के (सख्या) मित्रपन के काम (आयोः) मनुष्य के सुख को (अहन्) किसी दिन में (मा,दभन्) मत नष्ट करें (रिपः) और पृथिवी (मा) मत नष्ट करें वा जैसे मैं किसी मनुष्य के सुख को न नष्ट करूँ। वैसे हे सेनापति ! आप (आभ्यः) इन पृथिवी वा (दुच्छुनाभ्यः) दुःखकारिणी शत्रु की सेनाओं से (नः) हम लोगों को (मा,रीरधः) मत नष्ट करें (मा) मत (नः) हम लोगों को (मनसा) अन्तःकरण से (वि,यौः) अलग करें वा (सुम्नायता) अपने को सुख की इच्छा करते हुए (नः) हम लोगों को (विद्धि) जानो (तस्य) उस सज्जन के सुख को (मा) मत नष्ट करो, इस कारण हम लोग उक्त कर्म और आपको (ईमहे) याचते हैं ॥२॥
Connotation: - सब मनुष्यों को इस प्रकार सदा इच्छा करनी चाहिये कि किसी के सुख की हानि कभी न करनी चाहिये, मित्रता का भङ्ग न करना चाहिये, सब सज्जनों की सदा रक्षा करनी चाहिये, निरन्तर सज्जनों के लिये सुख माँगना चाहिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विदुषां मित्रत्वमाह।

Anvay:

यानि नो गुह्या सख्याऽऽयोरहन्मा दभन्। रिपश्च मा दभ्नीयाद्यथाहं कस्य चिन्मनुष्यस्य सुखं न दभ्नुयां तथा हे सेनेश त्वमाभ्यो दुच्छुनाभ्यो नो मा रीरधो मा नो वियौः सुम्नायता मनसा नो विद्धि तस्य सज्जनस्य सुखं मा वियौस्तस्माद्वयं तत्त्वेमहे ॥२॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (गुह्या) गुप्तानि रहस्यानि (रिपः) पृथिवी। रिप इति पृथिवीना० निघं० १। १ (आयोः) मनुष्यस्य सुखम् (अहन्) अहनि दिवसे (दभन्) दभ्नुयुः (मा) (नः) (आभ्यः) पृथिवीभ्यः (रीरधः) हिंस्यात् (दुच्छुनाभ्यः) दुःखकारिणीभ्यः शत्रुसेनाभ्यः (मा) (नः) अस्मान् (वि) (यौ) पृथक् कुर्याः (सख्या) सख्युः कर्माणि (विद्धि) जानीहि (तस्य) (नः) अस्माकम् (सुम्नायता) आत्मनः सुम्नं सुखमिच्छता (मनसा) अन्तःकरणेन (तत्) तम् (त्वा) त्वाम् (ईमहे) याचामहे ॥२॥
Connotation: - सर्वैर्मनुष्यैरेवं सदैवेषितव्यं यदस्माभिः कस्यचित्सुखहानिः कदाचिन्न कर्त्तव्या मित्रताभङ्गो नैव विधेयः शत्रुसेनाभ्यः सर्वे सज्जनाः सदा रक्षणीयाः सततं सत्पुरुषेभ्यः सुखं याचनीयञ्च ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सर्व माणसांनी या प्रकारची इच्छा करावी की आम्ही कुणाचे सुख नष्ट करता कामा नये. मित्रत्व नष्ट करता कामा नये. सर्व सज्जनांचे सदैव रक्षण केले पाहिजे व सज्जनांसाठी सुखाची सतत याचना केली पाहिजे. ॥ २ ॥