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ऊ॒र्ध्वो ह्यस्था॒दध्य॒न्तरि॒क्षेऽधा॑ वृ॒त्राय॒ प्र व॒धं ज॑भार। मिहं॒ वसा॑न॒ उप॒ हीमदु॑द्रोत्ति॒ग्मायु॑धो अजय॒च्छत्रु॒मिन्द्रः॑॥

English Transliteration

ūrdhvo hy asthād adhy antarikṣe dhā vṛtrāya pra vadhaṁ jabhāra | mihaṁ vasāna upa hīm adudrot tigmāyudho ajayac chatrum indraḥ ||

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Pad Path

ऊ॒र्ध्वः। हि। अस्था॑त्। अधि॑। अ॒न्तरि॑क्षे। अध॑। वृ॒त्राय॑। प्र। व॒धम्। ज॒भा॒र॒। मिह॑म्। वसा॑नः। उप॑। हि। ई॒म्। अदु॑द्रोत्। ति॒ग्मऽआ॑युधः। अ॒ज॒य॒त्। शत्रु॑म्। इन्द्रः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:30» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो (तिग्मायुधः) तीक्ष्ण आयुधों के तुल्य किरणोंवाला (ऊर्ध्वः) ऊपर स्थित (इन्द्रः) मेघ का हन्ता सूर्य (हि) ही (अन्तरिक्षे) आकाश में (अध्यस्थात्) अधिष्ठित है (अध) इसके अनन्तर (वृत्राय) मेघ के (हि) ही (वधम्) ताड़न को (प्र,जभार) प्रहार करता है (मिहम्) वृष्टि को (वसानः) अच्छादन करता हुआ (ईम्) सब ओर से (उप,अदुद्रोत्) समीप से द्रवित करता पिघलाता है इस प्रकार अपने (शत्रुम्) वैरी मेघ को (अजयत्) जीतता है, उसका बोध करो ॥३॥
Connotation: - सूर्य अतिदूरस्थ हो भूमि को धारण करता जल को खींचता है, जैसे यह मेघ को छिन्न-भिन्न कर भूमि पर गिराता है, वैसे ही राजपुरुषों को शत्रु गिराने चाहिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्याः तिग्मायुधः ऊर्ध्व इन्द्रो स्वन्तरिक्षेऽध्यस्थात्। अध वृत्राय हि वधं प्रजभार मिहं वसान ईमुपादुद्रोच्छत्रुमजयत्तं बुध्यध्वम् ॥३॥

Word-Meaning: - (ऊर्ध्वः) उपरिस्थितः (हि) किल (अस्थात्) तिष्ठति (अधि) (अन्तरिक्षे) आकाशे (अध) अथ (वृत्राय) वृत्रस्य। अत्र षष्ठ्यर्थे चतुर्थी (प्र) (वधम्) ताडनम् (जभार) हरति (मिहम्) वृष्टिम् (वसानः) आच्छादनयम् (उप) (हि) खलु (ईम्) सर्वतः (अदुद्रोत्) द्रवयति (तिग्मायुधः) तिग्मानि तीव्राण्यायुधानीव किरणा यस्य सः (अजयत्) जयति (शत्रुम्) वैरिणम् (इन्द्रः) मेघस्य छेत्ता ॥३॥
Connotation: - सूर्य्योऽतिदूरे स्थितो भूमिं धरति जलमाकर्षति यथाऽयं मेघं हत्त्वा भूमौ निपातयति तथैव राजपुरुषैः शत्रवो निपातनीयाः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सूर्य अत्यंत दूर असून भूमीला धारण करतो व जल ओढून घेतो. तो मेघाला जसे छिन्नभिन्न करून भूमीवर पाडतो, तसेच राजपुरुषांनी शत्रूंना मारले पाहिजे. ॥ ३ ॥