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अ॒स्माके॑भिः॒ सत्व॑भिः शूर॒ शूरै॑र्वी॒र्या॑ कृधि॒ यानि॑ ते॒ कर्त्वा॑नि। ज्योग॑भूव॒न्ननु॑धूपितासो ह॒त्वी तेषा॒मा भ॑रा नो॒ वसू॑नि॥

English Transliteration

asmākebhiḥ satvabhiḥ śūra śūrair vīryā kṛdhi yāni te kartvāni | jyog abhūvann anudhūpitāso hatvī teṣām ā bharā no vasūni ||

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Pad Path

अ॒स्माके॑भिः। सत्व॑ऽभिः। शू॒र॒। शूरैः॑। वी॒र्या॑। कृ॒धि॒। यानि॑। ते॒। कर्त्वा॑नि। ज्योक्। अ॒भू॒व॒न्। अनु॑ऽधूपितासः। ह॒त्वी। तेषा॑म्। आ। भ॒र॒। नः॒। वसू॑नि॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:30» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:13» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (शूर) दुष्टों को मारनेहारे वीरजन (यानि) जो (वीर्य्या) वीर पुरुषों के लिये हितकारी धन (ते) आपके (ज्योक्) निरन्तर (कर्त्त्वानि) करने योग्य हैं उनको (अस्माकेभिः) हमारे सम्बन्धी (सत्वभिः) शरीरधारी प्राणी (शूरैः) निर्भय पुरुषों के साथ आप (कृधि) कीजिये। जो (अनुधूपितासः) अनुकूल गन्धों से संस्कार किये हुए (अभूवन्) होवें उनकी रक्षाकर दुष्टों को (हत्वी) मारके (तेषाम्) उनके और (नः) हमारे (वसूनि) उत्तम द्रव्यों को आप (आ,भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये ॥१०॥
Connotation: - जब राजाओं में युद्ध प्रवृत्त हो प्रजास्थ मनुष्य उनके प्रति ऐसे कहें कि तुम डरो नहीं, जितने हमलोग हैं, वे सब तुम्हारे सहायक हैं, जो ऐसे आप हम आपस में एक-दूसरे से सहायक न हों तो विजय कहाँ से होवे? ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे शूर यानि वीर्य्या ते ज्योक् ते कर्त्तवानि सन्ति तान्यस्माकेभिः सत्वभिः शूरैस्त्वं कृधि येऽनुधूपितासोऽभूवन्तान् रक्षयित्वा दुष्टान् हत्वी तेषां नो वसूनि त्वमाभर ॥१०॥

Word-Meaning: - (अस्माकेभिः) अस्मदीयैः। अत्र वाच्छन्दसीत्यणि वृद्ध्यभावः (सत्वभिः) (शूर) दुष्टानां हिंसक (शूरैः) निर्भयैः (वीर्य्या) वीरेभ्यो हितानि धनानि (कृधि) कुरु (यानि) (ते) तव (कर्त्त्वानि) कर्त्तुं योग्यानि (ज्योक्) निरन्तरम् (अभूवन्) भवेयुः (अनुधूपितासः) अनुकूलैः सुगन्धैः संस्कृताः (हत्वी) (तेषाम्) (आ) (भर) धर। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः (नः) अस्माकम् (वसूनि) उत्तमानि द्रव्याणि ॥१०॥
Connotation: - यदा राजसु युद्धं प्रवर्त्तेत तदा प्रजास्थैर्जनैस्तान् प्रत्येवं वाच्यं नैव भेत्तव्यं यावन्तो वयं स्मस्तावन्तः सर्वे भवतां सहायाः स्मः यद्येवं यूयं वयं च न कुर्य्याम तर्हि कुतो विजयः ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जेव्हा राजांमध्ये युद्ध सुरू असेल तेव्हा प्रजेने त्यांना म्हणावे की तुम्ही घाबरू नका, आम्ही सर्वजण तुमचे सहायक आहोत. जर आपण एकमेकांचे सहायक बनलो नाही तर विजय कसा मिळेल? ॥ १० ॥