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वन॒स्पति॑रवसृ॒जन्नुप॑ स्थाद॒ग्निर्ह॒विः सू॑दयाति॒ प्र धी॒भिः। त्रिधा॒ सम॑क्तं नयतु प्रजा॒नन्दे॒वेभ्यो॒ दैव्यः॑ शमि॒तोप॑ ह॒व्यम्॥

English Transliteration

vanaspatir avasṛjann upa sthād agnir haviḥ sūdayāti pra dhībhiḥ | tridhā samaktaṁ nayatu prajānan devebhyo daivyaḥ śamitopa havyam ||

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Pad Path

वन॒स्पतिः॑। अ॒व॒ऽसृ॒जन्। उप॑। स्था॒त्। अ॒ग्निः। ह॒विः। सू॒द॒या॒ति॒। प्र। धी॒भिः। त्रिधा॑। सम्ऽअ॑क्तम्। न॒य॒तु॒। प्र॒ऽजा॒नन्। दे॒वेभ्यः॒। दैव्यः॑। श॒मि॒ता। उप॑। ह॒व्यम्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:3» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:23» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! जैसे (धीभिः) कर्मों के साथ वर्त्तमान (वनस्पतिः) वरगद आदि (अवसृजन्) फलादिकों का त्याग करता हुआ (उपस्थात्) उपस्थित होता है वा (अग्निः) अग्नि (त्रिधा) तीन प्रकार के (समक्तम्) समूह को प्राप्त हुए (हविः) होमने योग्य द्रव्य को (सूदयाति) प्राणिमात्र के सुख के लिये कण-कण करके पहुँचाता है, वैसे (शमिता) शान्ति करनेवाला (दैव्यः) विद्वानों में प्राप्त हुए (प्रजानन्) उत्तम ज्ञान को प्राप्त होते हुए आप (देवेभ्यः) दिव्य गुणों के लिये (उपहव्यम्) समीप में ग्रहण करने योग्य पदार्थ को (प्रनयतु) प्राप्त कीजिये ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे वनस्पति और अग्नि अपने कर्मों से समस्त प्राणियों का उपकार करते हैं, वैसे विद्वान् जन अध्ययन-अध्यापन और उपदेश से सबका उपकार करें ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वन् यथा धीभिस्सह वर्त्तमानो वनस्पतिरवसृजन्नुपस्थादग्निस्त्रिधा समक्तं हविः सूदयाति तथा शमिता दैव्यः प्रजानन् भवान् देवेभ्यः उपहव्यं प्रणयतु ॥१०॥

Word-Meaning: - (वनस्पतिः) वटादिः (अवसृजन्) अवसर्गं कुर्वन् (उप) (स्थात्) उपतिष्ठते (अग्निः) पावकः (हविः) होतव्यं द्रव्यम् (सूदयाति) क्षरयति प्रापयति (प्र) (धीभिः) कर्मभिः (त्रिधा) त्रिप्रकारकम् (समक्तम्) संहतम् (नयतु) (प्रजानन्) (देवेभ्यः) दिव्यगुणेभ्यः (दैव्यः) देवेषु लब्धः (शमिता) उपशमकः (उप) (हव्यम्) आदातुमर्हम् ॥१०॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वनस्पतयोऽग्निश्च स्वैः कर्मभिः सर्वान्प्राणिन उपकुर्वन्ति तथा विद्वांसोऽध्ययनाऽध्यापनोपदेशैः सर्वानुपकुर्वन्तु ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे वनस्पती व अग्नी आपल्या कार्याने संपूर्ण प्राण्यांवर उपकार करतात तसे विद्वान लोकांनी अध्ययन, अध्यापन व उपदेशाने सर्वांवर उपकार करावा. ॥ १० ॥