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अ॒र्वाञ्चो॑ अ॒द्या भ॑वता यजत्रा॒ आ वो॒ हार्दि॒ भय॑मानो व्ययेयम्। त्राध्वं॑ नो देवा नि॒जुरो॒ वृक॑स्य॒ त्राध्वं॑ क॒र्ताद॑व॒पदो॑ यजत्राः॥

English Transliteration

arvāñco adyā bhavatā yajatrā ā vo hārdi bhayamāno vyayeyam | trādhvaṁ no devā nijuro vṛkasya trādhvaṁ kartād avapado yajatrāḥ ||

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Pad Path

अ॒र्वाञ्चः॑। अ॒द्य। भ॒व॒ता॒। य॒ज॒त्राः॒। आ। वः॒। हार्दि॑। भय॑मानः। व्य॒ये॒य॒म्। त्राध्व॑म्। नः॒। दे॒वाः॒। नि॒ऽजुरः॑। वृक॑स्य। त्राध्व॑म्। क॒र्तात्। अ॒व॒ऽपदः॑। य॒ज॒त्राः॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:29» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:11» Mantra:6 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषयको अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अर्वाञ्चः) आत्मज्ञानसम्बन्धी आदि विद्या को प्राप्त होनेवाले (यजत्राः) अच्छी संगति करनेहारे (देवाः) विद्या और अच्छी शिक्षा के रक्षक विद्वान् लोगो! तुम (अद्य) आज दिन (नः) हमलोगों की (त्राध्वम्) रक्षा करो, जो (वः) तुम्हारा (हार्दि) जिस कार्य्य में मन लगता उसको हम लोग (आ) अच्छे प्रकार ग्रहण करें हमारे लिये आप विद्या देनेवाले (भवत) होओ (निजुरः) निरन्तर हिंसक (कर्त्तात्) छेदक (अवपदः) आपत्काल से (त्राध्वम्) रक्षा करो, हे (यजत्राः) विद्वानों के पूजक लोगो (वृकस्य) भेड़िया के तुल्य वर्त्तमान चोर के संसर्ग से रक्षा करो जिससे (भयमानः) भयको प्राप्त मैं व्यर्थ आयु को न (व्ययेयम्) नष्ट करूँ ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। विद्वानों का यही कर्त्तव्य है कि जो अज्ञान अविद्यादि दोषों से पृथक् रखके सब दुःख से पृथक् कर मनुष्यों को बड़ी अवस्थावाले धर्मात्मा करें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अर्वाञ्चो यजत्रा देवा यूयमद्य नस्त्राध्वम्। यद्वो हार्दि तद्वयमा गृह्णीम। अस्मभ्यं विद्याप्रदातारो भवत निजुरः कर्त्तादवपदस्त्राध्वम्। हे यजत्रा वृकस्येव वर्त्तमानस्य सकाशाद्रक्षत यतो भयमानोऽहं व्यर्थमायुर्न व्ययेयम् ॥६॥

Word-Meaning: - (अर्वाञ्चः) येऽर्वागञ्चन्ति विद्यां प्राप्नुवन्ति ते (अद्य) अस्मिन् दिने। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (भवत) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (यजत्राः) सुसङ्गतेः कर्त्तारः (आ) (वः) युष्माकम् (हार्दि) हार्दमस्मिन्नस्ति तत् (भयमानः) भयं प्राप्तः (व्ययेयम्) व्ययं कुर्य्याम (त्रायध्वं) रक्षत (नः) अस्मान् (देवाः) विद्यासुशिक्षादानरक्षकाः (निजुरः) नितरां हिंसकात् (वृकस्य) वृक इव वर्त्तमानस्य चोरस्य। वृक इति स्तेनना० निघं० ३। २। (त्रायध्वम्) पालयत (कर्त्तात्) छेदकात् (अवपदः) आपत्कालात् (यजत्राः) विद्वत्पूजकाः ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। विदुषामिदमेव कृत्यमस्ति यदज्ञानाविद्यादिदोषेभ्यः पृथग्रक्ष्य सर्वस्माद्दुःखात्पृथक्कृत्य दीर्घायुषो धर्मात्मनो जनान् कुर्युरिति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. अज्ञान, अविद्या दोषांपासून पृथक ठेवून सर्व दुःखांपासून पृथक करून माणसांना दीर्घायुषी बनवून धर्मात्मा करावे. हेच विद्वानांचे कर्तव्य आहे. ॥ ६ ॥